आयुर्वेद के छात्रों के क्लिनिकल प्रशिक्षण में नवाचार -SIMP

  Issue 30 Vol.-1 Jan-Mar 2025, Paper ID-E30/5  ISSN:2581-7884       RNI:UPBIL/2017/75141

 डा. धनवंतरी त्यागी1

1एस.एस  आयु.
धनवंतरी आयुर्वेद मल्टीस्पेशलिटी हास्पीटल  रेलवे रोड,हापुड़ उप्र
Akhandjeevan.hpr@gmail.com

सारांश

आयुर्वेद स्नातक अपनी डिग्री पूरा करने के बाद व्यावहारिक क्लिनिकल अभ्यास में कठिनाई महसूस करते हैं, जिससे कई चिकित्सक प्रैक्टिस छोड़ देते हैं। प्रत्येक डिग्री पाठ्यक्रम के साथ यही समस्या रहती है कि डिग्री पाठ्यक्रम के दौरान पढ़े और रटे गए तथ्य व्यावहारिक क्रियान्वयन के लागू करने का तरीका समझ नहीं आता और ज्ञान होते हुए भी एप्लीकेशन ऑफ नालेज नहीं हो पाता ।

सिम्प SIMP (Systematic Integrated Management Protocol) मॉडल इस समस्या का समाधान प्रदान करता है। यह प्रशिक्षण मॉडलचिकित्सकों को रोगी के लक्षणों का विश्लेषण, डिफरेंशियल डायग्नोसिस, पुष्टि परीक्षण, औषधि योजना, सेवन विधि, सावधानियां और अपेक्षित परिणामों पर व्यावहारिक अनुभव देता है। इससे चिकित्सकों का आत्मविश्वास बढ़ता है और वे प्रभावी उपचार कर पाते हैं। SIMP मॉडल आयुर्वेदिक शिक्षा को व्यवहारिक रूप में ढालकर पश्चिमी चिकित्सा पद्धति के साथ समन्वय स्थापित करता है, जिसेआयुर्वेद की मूल भावना और उद्देश्य में बदलाव किए बिना किया जा सकता है।

मुख्य विषय

इन्टर्नशीप और डिग्री के बाद भी अधिकांश नवीन चिकित्सकों के साथ अपने प्रशिक्षण को व्यावहारिक रूप से क्लिनिकल प्रैक्टिस में लाने में कठिनाई होती है।  बहुत से चिकित्सक इसकी वजह से आयुर्वेद की प्रैक्टिस से मुंह मोड़ लेते हैं।  हालाँकि अनुभवी चिकित्सक जानते हैं कि नियमित अभ्यास से यह समस्या नहीं होती है फिर भी चिकित्सकों की नवीन पीढ़ी के सामने आ रही समस्याओं को दूर करना भी अनुभवी चिकित्सकों का कर्तव्य है। 

नवीन चिकित्सकों की समस्याओं के कारणों में से कुछ कारण निम्न अनुसार है -:

•           रोगी का स्थानीय भाषा में लक्षणों को व्यक्त करना  जबकि संहितोक्त लक्षण को रोगी समझ नहीं सकता। 

•           अधिकांश रोगियों में निदान तकनीक, चिकित्सा और रोग आदि की जानकारी एलोपैथिक दृष्टिकोण से है जबकि आयुर्वेद की तकनीकों के बारे में सामान्य जनता में जानकारी का अभाव है। 

•           जब कोई चिकित्सक प्रैक्टिस आरम्भ करता है और वह सामान्य समस्याओं से पीड़ित रोगियों का उचित उपचार करता है उसी के पश्चात उसके पास विशेषज्ञता सम्बंधित रोगी आने लगते है।  सामान्य समस्याओं में चिकित्सा भी सामान्य होती है।

इन समस्याओं के निराकरण के लिए यदि आयुर्वेद के छात्रों को SIMP मॉडल के माध्यम से प्रशिक्षित किया जाए तो परिणाम बेहतर रहेंगे। 

SIMP से अर्थ Systematic Integrated Management Protocol (व्यवस्थित एकीकरण से रोग प्रबंधन)

इस मॉडल को न अधिक विस्तृत , न अधिक संक्षेप में निम्न अनुसार समझ सकते हैं।  विस्तार भय से कुछ बिंदुओं को छोड़ दिया गया है।  आयुर्वेदीय अध्यापन और प्रशिक्षण क्षेत्र के निष्णात चिकित्सक इसमें नवीन बिंदुओं का समावेश, परिवर्तन करेंगे तो इसके परिणाम अधिक सुखद होंगे। 

शीर्षक- Systematic Integrated Management Protocol (व्यवस्थित एकीकरण से रोग प्रबंधन)

प्रक्रिया - छात्रों को रोग लक्षणों और रोगी की कुछ जानकारी देकर मॉडल के अनुरूप व्यवस्था पत्र तैयार करने को दिया जाए उसके पश्चात ओपीडी में आये रोगी को प्रशिक्षक के सीधे पर्यवेक्षण में छात्र द्वारा परामर्श दिलवाया जाए।

मॉडल सिस्टम -

ओपीडी में आये वयस्क रोगी, क्लर्क , नियमित एल्कोहल सेवन (कम मात्रा में ) निम्न समस्याओं से ग्रस्त है- एसिडिटी, दिल की धड़कन बढ़ना, सामान्यतः: सिर में भारीपन होने पर बीपी बढ़ा हुआ मिलता है।  शीघ्र चिड़चिड़ापन, पेशाब के साथ झाग, रात को नींद का देर से आना, गहरी नींद नहीं आना से चार महीनों से पीड़ित है।

1.आयुर्वेद और एलोपैथी के अनुसार डिफरेंशियल डायग्नोसिस (Differential Diagnosis)

रोगी की मुख्य समस्याएँ:

•           एल्कोहल सेवन

•           बीपी की शिकायत

•           हृदय की धड़कन तेज और दर्द

•           एसिडिटी और पेट में गैस

•           मूत्र में झाग (संभावित प्रोटीन लीक)

•           तनाव और अनिद्रा

•           आयुर्वेद अनुसार डिफरेंशियल डायग्नोसिस (Differential Diagnosis in Ayurveda)

मुख्य दोष: वात-पित्त का प्रकोप, यकृत और हृदय पर असर। प्रमुख रूप से अम्लपित्त + पित्तज हृद्रोग + यकृत विकृति + पित्तज प्रमेह (किडनी प्रोटीन लीकेज) हो सकता है।

•           एलोपैथ अनुसार डिफरेंशियल डायग्नोसिस (Differential Diagnosis in Allopathy)

यह रोगी मुख्य रूप से GERD + Hypertension + Alcoholic Liver Disease + Early CKD + Anxiety Disorder से प्रभावित हो सकता है। संभावित रूप से किडनी में हल्की क्षति (Proteinuria Stage 1-2), हृदय पर प्रभाव (Arrhythmia या High BP), यकृत (Alcoholic Fatty Liver) और पाचन तंत्र (GERD, Gastritis) जुड़ा हो सकता है।

2. Provisional Diagnosis-:

•           आयुर्वेद अनुसार: - अम्लपित्त + पित्तज हृद्रोग + यकृत विकृति + पित्तज प्रमेह + वात-पित्त असंतुलन।

•           एलोपैथ अनुसार: - GERD + Alcoholic Liver Disease + Hypertension + Early CKD + anxiety disorder.

3. महत्वपूर्ण जाँच (Confirmatory Tests Required)

•           आयुर्वेद अनुसार-

1.         रोगी की शारीरिक प्रकृति

2.         रोगी की दिनचर्या और दैनिक भोजन चर्या की विस्तृत जानकारी

3.         नाड़ी, जिह्वा, मूत्र की तैल बिंदु परीक्षा

•           एलोपैथ के अनुसार -

LFT, KFT, Urine Protein Test, BP Monitoring, ECG, Lipid Profile, Sleep Study. यदि GERD और Gastritis की पुष्टि करनी हो, तो Endoscopy और H. Pylori Test भी उपयोगी होंगे।

4. औषध व्यवस्था पत्र -

1. अविपत्तिकर चूर्ण – 3-5 ग्राम (एसिडिटी, पित्त शमन, यकृत और पाचन सुधार।)

2. कामदुधा रस (मोतीयुक्त) – (1-2 गोली (हृदय धड़कन सामान्य करना, मानसिक शांति और शीतलता   प्रदान करना।)

3. गिलोय सत्व – 500mg (तनाव कम करना, इम्यूनिटी बढ़ाना और एल्कोहलिक प्रभाव को कम करना।)

4. चंद्रप्रभा वटी – 1-2 गोली (गुर्दों की रक्षा, मूत्र प्रणाली का संतुलन और मानसिक तनाव को कम करना।)

5. यशद भस्म – 125mg (गुर्दों की सूजन और पेशाब में झाग कम करने में सहायक।)

6. जटामांसी चूर्ण – 500mg या सारस्वतारिष्ट 10ml (तनाव, चिंता और अनिद्रा में विशेष लाभकारी, मस्तिष्क की तंत्रिका शक्ति को बढ़ाकर निद्रा को संतुलित करता है।)

7. ब्राह्मी वटी – 1 गोली रात को (नर्वस सिस्टम को शांत करना, मानसिक थकान कम करना, नींद सुधारना।)

5. सेवन विधि (Dosage & Administration)

•           सुबह अविपत्तिकर + कामदुधा + गिलोय सत्व + चंद्रप्रभा वटी – का मिश्रण  सुबह नाश्ते के पहले , रात्रि भोजन के पश्चात शीतल जल या गिलोय स्वरस के साथ।

•           ब्राह्मी वटी + जटामांसी चूर्ण – रात में सोते समय, सारस्वतारिष्ट या गुनगुने दूध या मिश्री युक्त जल के साथ। 

 इस औषध योग का निर्णय क्यों लिया गया ? (Why This Combination?)

•           पित्त और एसिडिटी नियंत्रण – अविपत्तिकर + कामदुधा

•           हृदय धड़कन सामान्य और मानसिक शांति – कामदुधा + चंद्रप्रभा

•           गुर्दों की रक्षा और मूत्र संतुलन – चंद्रप्रभा + यशद भस्म

•           तनाव और मस्तिष्क की शक्ति बढ़ाना – जटामांसी + ब्राह्मी वटी

•           गहरी और शांति देने वाली नींद – ब्राह्मी वटी + सारस्वतारिष्ट

 6. सावधानियां (Precautions)

1.         यदि सिर्फ एसिडिटी और पित्त शमन करना हो, तो अविपत्तिकर + कामदुधा पर्याप्त है।

2.         यदि अत्यधिक दस्त (Loose Stools) होते हैं, तो अविपत्तिकर की मात्रा कम करें।

3.         यदि रोगी को पहले से ही अत्यधिक मूत्र आता है, तो चंद्रप्रभा की मात्रा कम करें।

4.         गर्भवती महिलाएं: बिना परामर्श इस योग को न लें, विशेषकर चंद्रप्रभा वटी।

5.         लो बीपी रोगी: यदि पहले से ही BP कम रहता है, तो चंद्रप्रभा वटी की मात्रा कम करें।

6.         अत्यधिक वात प्रधान व्यक्ति: यदि शरीर में अधिक ठंडक या गैस की समस्या हो, तो जटामांसी और ब्राह्मी कम दें।

7.         मधुमेह (Diabetes) वाले रोगी: इस योग में चंद्रप्रभा वटी है, जो ब्लड शुगर घटा सकती है, इसलिए शुगर लेवल मॉनिटर करें।

7.इस औषध योग में पोषक तत्त्वों की उपलब्धता -

•           Calories: 40 Calories

•          Minerals and trace elements- Calcium, Magnesium, zinc, Iron.

•           Vitamins- Vitamin B12, D, C

•           Other elements- Iron, Vit D, Vit B12

8.इस योग से संभावित परिणाम (समय और प्रतिशत अनुसार) रोगी की समस्या (पित्त वृद्धि, एसिडिटी, हृदय धड़कन, एल्कोहलिक प्रभाव, मूत्र में झाग, तनाव, अनिद्रा) के अनुसार इस योग से मिलने वाले समयबद्ध और प्रतिशत आधारित संभावित परिणाम इस प्रकार हो सकते हैं:

•           7 दिन (1 सप्ताह) के भीतर – 20-30% सुधार

A.        एसिडिटी और जलन में राहत (50-60%)

B.        हृदय की धड़कन सामान्य होने लगेगी (30-40%)

C.        मूत्र में झाग की समस्या हल्की होने लगेगी (15-25%)

D.        तनाव और मानसिक शांति में हल्का सुधार (20-30%)

E.         नींद में सुधार शुरू (25-30%)

•           15 दिन (2 सप्ताह) के भीतर – 40-50% सुधार

A.        यकृत कार्यक्षमता में सुधार (40-50%)

B.        बीपी का स्तर संतुलित होना (30-40%)

C.        गुर्दों की रक्षा और मूत्र में झाग कम होना (40%)

D.        मस्तिष्क की एकाग्रता और मानसिक शांति (40-50%)

E.         नींद की गुणवत्ता और गहरी नींद में वृद्धि (50%)

•           30 दिन (1 माह) के भीतर – 70-80% सुधार

A.        एसिडिटी, पाचन और पित्त संतुलन (80%)

B.        गुर्दों की रक्षा और मूत्र में झाग पूरी तरह नियंत्रित (70-80%)

C.        यकृत डिटॉक्स प्रभाव मजबूत (75-85%)

D.        हृदय धड़कन संतुलित, तनाव काफी हद तक कम (70%)

E.         नींद की गहराई और तनाव-मुक्त जीवन (80%)

F.         इम्यूनिटी मजबूत, त्वचा और ऊर्जा स्तर में सुधार (80%)

•           60 दिन (2 माह) के भीतर – 90-95% सुधार

A.        एल्कोहल से क्षतिग्रस्त यकृत की मरम्मत (90%)

B.        गुर्दों का कार्य पूर्ण रूप से सामान्य (95%)

C.        मानसिक तनाव, हृदय धड़कन पूरी तरह संतुलित (90%)

D.        नींद का संतुलन और मानसिक स्पष्टता (95%)

 यदि रोगी को कोई अन्य पुरानी बीमारी (क्रॉनिक किडनी डिजीज, लिवर सिरोसिस, उच्च रक्तचाप) है, तो पूर्ण सुधार में अधिक समय लग सकता है। ऐसे में कुछ योगों को 3-6 माह तक देना उचित होगा।

             


 

 

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