आयुर्वेद में दर्शन का महत्व

समाज में यह आम धारणा है आयुर्वेद केवल चिकित्सा विज्ञान है,जबकि सच यह है कि आयुर्वेद जीवन का विज्ञान है।-डॉ.आर.अचल पुलस्तेय*
समाज में यह आम धारणा है आयुर्वेद केवल चिकित्सा विज्ञान है,जबकि सच यह है कि आयुर्वेद जीवन का विज्ञान है। जीवन ब्रह्मण्ड का महत्वपूर्ण घटक है,इसलिए ब्रह्मण्ड की परिवर्तनशीलता से प्रकृति में परिवर्तन होते हैं,जिसका प्रभाव मानव जीवन पर भी पड़ता है। इसलिए जीवन के प्रकृति-विकृति के पहचान और स्वास्थ्य के लिए ब्रह्मण्ड-प्रकृति को समझना जरूरी है।

पाश्चात्य आधुनिक चिकित्सा विज्ञान के प्रभाव में कभी-कभी यह सवाल उठता है कि प्राचीन भारतीय चिकित्सा विज्ञान आयुर्वेद,सिद्ध या सोवारिंग्पा में दर्शन को क्यों महत्व दिया गया । जबकि यह सामान्य तथ्य है कि विज्ञान और दर्शन एक दूसरे के पूरक हैं। विज्ञान प्राकृतिक जगत की तथ्यात्मक समझ चाहता है- जैसे ब्रह्मांड कैसे काम करता है? दर्शन उन मूलभूत प्रश्नों को उठाता है जो प्रकृति को समझने के लिए जरूरी होते है-जैसे सत्य क्या है?, हम क्यों हैं ? गहराई से देखे तो यही सवाल विज्ञान का मूल आधार है । विज्ञान में तर्क, संदेह और परीक्षण जैसी अवधारणाएं दर्शन से ही आईं हैं विज्ञान नई तकनीकें देता है, पर उनका उपयोग दर्शन तय करता है।
दर्शन यह पूछता है कि "क्या हम वास्तव में कुछ जान सकते हैं?"-यह सवाल विज्ञान की प्रयोग विधियों को चुनौती और स्पष्टता देता है। दर्शन का मूल “क्यों„ है,तो विज्ञान  का मूल “कैसे„ है-दोनों के मिलकर ही ज्ञान को पूर्ण करते हैं।
इसलिए आयुर्वेद में अध्ययन की शुरुआत दर्शन से की जाती है । यह अध्ययन न केवल ज्ञान को गहराई प्रदान करता है, बल्कि चिकित्सा अभ्यास को भी एक सुदृढ़ आधार देता है ।
आधुनिक चिकित्सा विज्ञान भी दर्शन से मुक्त नहीं है,वह भौतिक दर्शन पर आधारित है,जबकि आयुर्वेद भौतिक-पराभौतिक दोनों तरह के दर्शनों पर आधारित है। भारतीय संस्कृति में छ दर्शन न्याय, वैशेषिक, सांख्य, योग, मीमांसा,वेदान्त  प्रचलित है ये आस्तिक वर्ग है,नास्तिक वर्ग में चार्वाक,बौद्ध,जैन दर्शन आते हैं ।आयुर्वेद में सभी दर्शनों को रखा गया है।
ब्रह्मांड और मानव शरीर के अंतर्संबंध को समझने के लिए  सांख्य और वैशेषिक दर्शन महत्वपूर्ण है जो सृष्टि के विकास और मानव शरीर की संरचना के मूलभूत सिद्धांतों की व्याख्या करते हैं। प्रकृति के त्रिगुणों (सत्त्व, रज, तम) और पंचमहाभूतों (पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, आकाश) की अवधारणाओं को समझने, निदान और चिकित्सा के दृष्टिकोण को व्यापक बनाते हैं। दर्शन से इस तथ्य का ज्ञान होता है कि यत् पिण्डे तद् ब्रह्माण्डे अर्थात मानव शरीर प्रकृति का ही एक सूक्ष्म रूप है और इसलिए प्रकृति के नियमों से प्रभावित होता है।
इस सूत्र से स्वास्थ्य और रोग की अवधारणा व्यापक हो जाती है। दर्शन, जीवन के उद्देश्य, सुख-दुख के कारण और आत्मा के स्वरूप जैसे गहन विषयों की समझ होती है।  दर्शन के कारण ही आयुर्वेद स्वास्थ्य को शारीरिक और मानसिक संतुलन के से आगे बढ़कर, आध्यात्मिक और सामाजिक आयामों तक देखता है । रोग केवल शारीरिक विकृति नहीं, बल्कि जीवनशैली, विचारों और कर्मों के असंतुलन का परिणाम भी होता है, यह समझ दर्शन के अध्ययन से विकसित होती है।
दर्शन, तर्क, अनुमान और प्रत्यक्ष ज्ञान से नैदानिक कौशल विकसित होता है। रोगी की प्रकृति, रोग के कारण और संभावित उपचारों का विश्लेषण करने के लिए एक तार्किक और व्यवस्थित दृष्टिकोण प्रदान करता है। विभिन्न दार्शनिक प्रणालियों के ज्ञान से चिकित्सक, रोगी की व्यक्तिगत और सामाजिक परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए, अधिक सटीक निदान संभव हो पाता हैं।
आयुर्वेद में केवल रोगों का इलाज ही महत्वपूर्ण नहीं है, बल्कि रोगी के प्रति चिकित्सक का दृष्टिकोण, करुणा, सत्यनिष्ठा और सेवा भाव भी अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। दर्शन, विशेष रूप से योग और वेदान्त दर्शन, नैतिक मूल्यों और मानवीय गुणों के महत्व पर प्रकाश डालते हैं। यह विद्यार्थियों को एक कुशल चिकित्सक के साथ-साथ एक संवेदनशील और नैतिक व्यक्ति बनने के लिए प्रेरित करते  है।
मानसिक और आध्यात्मिक स्वास्थ्य के महत्व को समझने के लिए योग दर्शन मन की प्रकृति, उसकी वृत्तियों और उन्हें नियंत्रित करने के उपायों का विस्तृत वर्णन जरूरी होता है। यह आयुर्वेद के विद्यार्थियों को मानसिक स्वास्थ्य के महत्व को समझने और रोगियों को तनाव, चिंता और अवसाद जैसी मानसिक समस्याओं से निपटने में सहायता करने के लिए ज्ञान और तकनीकें प्रदान करता है। आध्यात्मिक दर्शन जीवन के उद्देश्य और अर्थ की खोज पर बल देता है, जो रोगियों को कठिन परिस्थितियों का सामना करने और आंतरिक शांति प्राप्त करने में सहायक होता है।
दर्शन का ज्ञान चिकित्सक को रोगी को केवल लक्षणों के समूह के रूप में देखने के बजाय, एक पूर्ण व्यक्ति के रूप में देखने में सक्षम बनाता है। वह रोगी के शारीरिक, मानसिक, सामाजिक और आध्यात्मिक पहलुओं को ध्यान में रखते हुए उपचार योजना बनाने में सहायक होता है।
दार्शनिक सिद्धांतों की समझ चिकित्सक को रोग के मूल कारणों तक पहुंचने में मदद करती है। प्रकृति के नियमों और मानव शरीर के अंतर्संबंधों का ज्ञान निदान प्रक्रिया को अधिक तर्कसंगत और प्रभावी बनाता है।
प्रत्येक व्यक्ति की प्रकृति (प्रकृति) अलग  होती है। दर्शन का अध्ययन चिकित्सक को इस वैयक्तिक भिन्नता को समझने और प्रत्येक रोगी के लिए उसकी प्रकृति और आवश्यकताओं के अनुसार उपचार योजना तैयार करने में सहायक होता है।
दर्शन, स्वस्थ जीवनशैली के महत्व पर जोर देता है। चिकित्सक, दार्शनिक सिद्धांतों के आधार पर, रोगियों को उचित आहार, व्यायाम, दिनचर्या और नैतिक आचरण के बारे में मार्गदर्शन करने में सहायक होता हैं, जो रोग निवारण और स्वास्थ्य संवर्धन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
दर्शन, करुणा, सहानुभूति और सत्यनिष्ठा जैसे नैतिक मूल्यों पर बल देता है, जो एक मजबूत और विश्वासपूर्ण रोगी-चिकित्सक संबंध बनाने के लिए आवश्यक हैं। यह संबंध रोगी के उपचार और स्वास्थ्य लाभ में महत्वपूर्ण होता है।
आयुर्वेद में दर्शन का अध्ययन केवल एक अकादमिक आवश्यकता नहीं है, बल्कि यह आयुर्वेद के सिद्धांतों की गहरी समझ विकसित करने, नैदानिक कौशल को बढ़ाने, चिकित्सा के नैतिक आधार को मजबूत करने और रोगियों को समग्र रूप से स्वस्थ करने में महत्वपूर्ण भूमिका  है। यह आयुर्वेद के विद्यार्थियों को एक कुशल चिकित्सक बनने के साथ-साथ एक संवेदनशील और ज्ञानी व्यक्ति बनने की दिशा में प्रेरित करता है।
(* लेखक एम.डी.आयुर्वेद चिकित्सक,लेखक,विचारक एवं ईस्टर्न साइंटिस्ट मल्टीडिस्प्लीनरी जर्नल के मुख्य संपादक है।
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