जीवन में लय उत्पन्न कर लिया वही सरस्वती मय हो गया-अचल पुलस्तेय
सार- हिन्दू धर्म में विद्या कला की देवी सरस्वती के संबंध में अनेक कथायें मिलती है। जैन,बौद्ध,तंत्र में भी विविध नामों से विद्या की देवी की पूजा होती है। एशिया अन्य देशों चीन,जापान,म्यामार,थाईलेंड में भी अलग नामों से देवी सरस्वती की पूजा होती है।
धर्मशास्त्रों में दो सरस्वती का वर्णन आता है, एक ब्रह्मा पत्नी सरस्वती एवं एक ब्रह्मा पुत्री तथा विष्णु पत्नी सरस्वती। ब्रह्मा पत्नी सरस्वती मूल प्रकृति से उत्पन्न सतोगुण महाशक्ति एवं प्रमुख त्रिदेवियों में से एक हैं। देवी भागवत के अनुसार विष्णु की पत्नी सरस्वती ब्रह्मा के जिह्वा से प्रकट होने के कारण ब्रह्मा की पुत्री मानी जाती है। इसी सरस्वती पर ब्रह्मा मोहित भी हुए थे। कई शास्त्रों में इन्हें मुरारी वल्लभा (विष्णु पत्नी) कहा गया है। धर्मशास्त्रों के अनुसार दोनों देवियाँ ही समान नाम स्वरूप, प्रकृति, शक्ति एवं ब्रह्मज्ञान-विद्या आदि की अधिष्ठात्री देवी मानी गई है। कही-कहीं ब्रह्म विद्या एवं नृत्य संगीत क्षेत्र के अधिष्ठाता के रूप में दक्षिणामूर्ति/नटराज शिव एवं सरस्वती दोनों को माना जाता है। इसी कारण दुर्गा सप्तशती की मूर्ति रहस्य में दोनों को एक ही प्रकृति का कहा गया है। कहीं-कहीं ब्रह्मा पुत्री सरस्वती को विष्णु पत्नी सरस्वती से संपूर्णतः अलग माना जाता है इस तरह मतान्तर में तीन सरस्वती का भी वर्णन आता है। इसके अन्य पर्याय या नाम हैं वाणी, शारदा, वागेश्वरी, वेदमाता इत्यादि। देवी सरस्वती का वर्णन वेदों के मेधा सूक्त में, उपनिषदों, रामायण, महाभारत के अतिरिक्त कालिका उपपुराण, श्रीमद् देवी भागवत महापुराण इत्यादि इसके अलावा ब्रह्मवैवर्त पुराण में विष्णु पत्नी सरस्वती का विशेष उल्लेख आया है। पर यह ब्रह्मा पत्नी सरस्वती से संपूर्ण अलग हैं। तंत्रोक्त आगमों के अनुसार ब्रह्मा अकेले सृष्टि करने में असमर्थ थे,फिर महाकाल शिव का ध्यान कर अपनी समस्या बतायी, प्रसन्न महाकाल ने अपनी आद्या शक्ति महाकाली से निवेदन कर अपने अंश से सरस्वती को उत्पन्न करने ब्रह्मा की सहयोगिनी के रुप में प्रदान किया । तंत्र में विद्याराज्ञी देवी दक्षिण काली और तारा को माना गया है। महाविद्या तारा का एक रूप नील सरस्वती का है। जैन धर्म में सरस्वती जैसी विद्या ज्ञान की देवी श्रुतदेवी है। | उसमें श्रुतदेवी कोई देवी नहीं है वरन् जिनेन्द्र भगवान की दिव्यध्वनि स्वरूप श्रुतदेवी ही सरस्वती है। तांत्रिक बौद्ध धर्म में सरस्वती एक ध्यान देवी हैं जो साहित्य, कविता और ज्ञान की देवी के रूप में प्रकट होती हैं । उसके कई अलग-अलग रूप हो सकते हैं, लेकिन मुख्य रूप से सफेद या लाल । अपने सफेद रूपों में वह आम तौर पर ज्ञान और सीखने की देवी हैं। अपने लाल रूपों में वह एक शक्ति देवी हैं। श्वेत तारा भी कहा गया है.जो अवलोकितेश्वर की पत्नि हैं। सरस्वती के वज्रभैरव और देवताओं के यमरी चक्र से संबंधित कई क्रोधी रूप हैं जो सीधे ज्ञान, रचना या वाक्पटुता से जुड़े नहीं हैं। म्यानमार में बौद्ध शैली में विद्या की देवी का मंदिर और मूर्ति है जिन्हें थुरथदी कहते हैं। चीन में विद्या कला की देवी के रुप में बियानचयित्यान की पूजा होती है,इसी तरह जापान में बेंडाइंतेन व थाईलैंड में सुरसवदी के रूप में सरस्वती पूजी जाती है। हम भोजपुरिया लोग भी सुरसती ही कहते है। सुरसतिया अक्सर लड़कियों महिलाओं नाम मिल जायेगा। यह नाम काफी सार्थक लगता है मुझे,सुर अर्थात स्वर लय का सत्य । सरस्वती का वास्तविक अर्थबोध यही लगता है मुझे ।इसलिए नास्तकि आस्तिक ही नही जीव पार्थिव जिसमें स्वर निकलता है वह सब सरस्वती मय है।अंतिम बात यह कि जिसने जीवन में लय उत्पन्न कर लिया वही सरस्वती मय हो गया,शिक्षा का असल उद्देश्य यही तो है।-पुलस्तेय
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