प्रयाग के भीड़-भगदड़-दुर्घटना से कुछ नहीं सीखे हम ?
कुंभ मेला समाप्त होने के करीब है,फिर भी प्रयागराज की ओर जाने वाली रेलों,सड़क,हवाई जहाजों में भीड़ बनी हुई है। लगता है प्रयाग के भीड़-भगदड़-दुर्घटना से कुछ नहीं सीखें है हम। जिसके परिणाम स्वरूप 15 फरवरी की रात दिल्ली रेलवे स्टेशन पर हुई भगदड़ में सरकारी आंकड़ो के अनुसार करीब 18-20 लोग जान गवाँ बैठे हैं।
कुंभ मेला समाप्त होने के करीब है,फिर भी प्रयागराज की ओर जाने वाली रेलों,सड़क,हवाईयात्राओं में भीड़ बनी हुई है। लगता है प्रयाग के भीड़-भगदड़-दुर्घटना से कुछ नहीं सीखें है हम। जिसके परिणाम स्वरूप 15 फरवरी की रात दिल्ली रेलवे स्टेशन पर हुई भगदड़ में सरकारी आंकड़ों के अनुसार करीब 18-20 लोग जान गवाँ बैठे हैं। यह सामान्य बात हम समझने में नाकाम रहे हैं कि जहाँ भीड़ होती है वहाँ दुर्घटनाओं की आशंका बनी रहती है। भीड़ और दुर्घटनाओं की बात शिक्षित-अशिक्षित किसी से छुपी नहीं है। फिर भी भीड़ में कोई कमी नहीं हो रही है। कुछ लोग मरे लोगों की उपेक्षा कर बिना भय आशंका,अफसोश, संवेदना के भीड़ का हिस्सा बनने के लिए भागे जा रहे हैं। आखिर क्यों, इसके मनोसामाजिक तह में जाने पर लगता है यह मीडिया, सोसल मीडिया और सरकारी तंत्र की सूचनात्मक संदेशों की बारम्बारता के कारण हो रहा है। तमाम कष्ट सह कर भी लोग भीड़ का हिस्सा बनने को आतुर है।
भीड़ और प्रबंधन की समस्याओं के कारण वे देश के चार कोनों प्रयाग, उज्जैन, नासिक, हरिद्वार में कुम्भ की परम्परा स्थापित की,जिससे क्षेत्रीय लोग कुम्भ स्नान कर सके। लेकिन आज के लोगों ने एक कुम्भ को 144 साल का दुर्लभ योग बता कर पूरे देश का आवाहन कर लिया है। सरकारी सूचना तंत्र, मीडिया, सोसल मीड़िया ने दुर्लभ कुम्भ का ऐसा सम्मोहन पैदा कर दिया है कि लोग भीड़ बनकर खुशी-खुशी दुर्घटनायें झेलने के लिए राजी हैं । सूचनात्मक समूह सम्मोहन बहुत खतरनाक प्रयोग होता है। पूरे समाज की सोचने की शक्ति छीनकर संक्रामक महामारी बन जाता है।
अब इससे बचने का क्या उपाय है, इस पर कहीं विमर्श या चर्चा नहीं हो रही है।इतनी दुर्घटनाओं के बावजूद सम्मोहन को गहरा करने की प्रक्रिया जारी है,जबकि आज सम्मोहन तोड़ने की जरूरत है। यह सवाल आज का ही नहीं है,भविष्य के कुम्भ, मेलों या तीर्थ स्थलों या किसी तरह के भीड़ भरे आयोजनों का भी है। जिसके लिए जरूरी हो गया कि देश के संतों, महात्माओं, धर्मगुरुओं, सरकारों, समाजशास्त्रियों, बुद्धिजीवीओं,विचारकों को मीड़िया, सोसल मीडिया द्वारा भीड़ को विरल करने का संदेश प्रसारित करना चाहिए। यह बताना होगा कि सबसे बड़ा धर्म देह रक्षा है,देह रहेगी तभी पुण्य का अवसर मिलेगा। मोक्ष या पुण्य के लिए स्नान से महत्वपूर्ण चेतना है।जिसे कहीं भी रह कर मनन-चिंतन से प्राप्त किया जा सकता है। गंगा ही नहीं धरती के किसी कोने के जल की एक-एक बूंद पवित्र है। वैसे कहें तो सबसे पवित्र वह जल है जो आपके जीवन की रक्षा करता है। जिसे आप रोज पीते हैं। रही स्नान की बात तो पहले से ही परम्परा है कि किसी भी स्नान पर्व पर हर नगर,गाँव के नदी,नाले,ताल पोखर में स्नान किया जा सकता है। पर आज सबकी उपेक्षा कर एक स्थान को सर्वक्षेष्ठ घोषित किया जा रहा है। शायद ऐसा ही समाज और देश का चरित्र बन गया. राजनीति समाज हो व्यापार सबमें यही घटित हो रहा है एक को इतना महान घोषित कर दिया जा रहा शेष सभी बौने बन जा रहे है। यह व्यापक बौनापन ही भीड़ और दुर्घटना का असल कारण है।-संपादक
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