अच्छा लिखना है तो पढ़ना जरूरी है-पुलस्तेय
वैश्विक प्रतिष्ठित कवि-विचारक रति सक्सेना अपनी चीन यात्रिकी किताब "चाप स्टिक बनाम बुद्धा" एक महिला कवि हम्बूदियार के बारे में लिखती है- "बेहतरीन चीनी कवि हैं,उतनी ही बेहतरीन योग अध्यापिका भी हैं,प्राचीन चीनी चिकित्सक भी हैं। बुद्ध धर्म की अनुयायी हैं। यिन-यान सिद्धात के अनुसार चिकित्सा करती हैं। "
हम्बूदियार के बारे में जान कर मुझे लगा कि दुनिया में कोई अकेला नहीं है, मुझे लगा कि मैं भारत का हम्बूदियार हूँ,बस जेंडर का ही तो फर्क है। आयुर्वेद चिकित्सक होकर साहित्य, संस्कृति, कविता कहानी में मैं भी टांग अड़ा रखा हूँ। भारत में ऐसे लोगो को प्रकाशक, समीक्षक, सम्पादक साहित्य का विजातीय पदार्थ मानते हैं। हालाँकि देह के स्वास्थ्य़ के लिए जितना जरूरी चिकित्सा विज्ञान है,मन के स्वास्थ्य के लिए उतना ही जरूरी साहित्य है। इसलिए मुझे लगता है कि एक संवेदनशील चिकित्सा में कवि-साहित्यकार अवश्य बैठा होता है। हाँ यदि विशुद्ध व्यवसायिक चिकित्सक है तो बिल्कुल संभव नहीं है। आज चिकित्सा विशुद्ध व्यवसायिक हो चुकी है,इसलिए देह की चिकित्सा कराते-कराते आदमी का मन बीमार हो जाता है। फिलहाल बात चीनी चिकित्सा की करते हैं,क्योकिं चीनी चिकित्सा पद्धित, भारतीय चिकित्सा पद्धति आयुर्वेद जैसी ही है। दोनो चिकित्सा पद्धतिया देह,मन और प्रकृति तीनों संतुलन को ही वास्तविक स्वास्थ्य मानती हैं।उधर यिन-यान चीन के प्राचीतम धर्म "ताओ" दर्शन का आधार है। " "कुरुना से कामाख्या" अध्ययन यात्रा में मुझे पता चला कि पूर्वोत्तर की चीनीमूल की आदिम जातियाँ नागा,कूकी,मिसी,आहोम आदि आज भी ताओ धर्म को उसी तरह मानती हैं,जैसे उत्तर भारत में आदिम,पिछड़े,दलित अपने लोक देवी-देवताओं की परम्परा को पालन करते हुए वैदिक पौराणिक धर्मों को स्वीकार करते है,हालाँकि भारत में ताओ धर्म भारत सरकार या अध्येताओं के नजर बिल्कुल नहीं है।
बात यिन-यान की हो रही थी, पर क्या करूँ ? विषय ही ऐसा है ।रति की यह करीब सौ पेज की किताब,किताबत के अनेक दरवाजे-खिड़कियाँ खोलने लगती है,इसलिए बहकना स्वभाविक हो जाता है। हाँ तो यिन-यान के अनुसार पूरा ब्रह्माण्ड और जीव जगत यिन-यान से बना है। यिन-यान के असंतुलन से रोग होता है,उसे संतुलित करने के उपाय ही चिकित्सा है । यिन-यान का संतुलन ही स्वास्थ है । चीनी चिकित्सा के जनक ली सी जडं ने इस चिकित्सा का विकास किया । जडं और उनके चिकित्सा सिद्धात व प्रयोग के विषय में मैने अपने उपन्यास " कोरोना कालकथा-स्वर्ग में सेमीनार" में विस्तृत रुप में किया है।
इधर भारत के शाक्तों तांत्रिको ने यिन-यान सिद्धात को शिव-शक्ति कहा है,जिनसे ब्रह्माण्ड का सृजन हुआ,ब्रह्माण्ड में व्याप्त है,कुंडलिनी के रुप में हर देह में व्याप्त है,जिनका असंतुलन ही व्याधि है,संतुलन ही स्वास्थ्य है। इस विषय पर मैंने अपनी किताब "श्रीविद्याचक्रर्चन महायाग" में विस्तृत रूप में लिखा है। इसे ही मेटा फिजिक्स,क्वांटम फिजिक्स में बिगबैंग सिद्धांत के रुप में वैज्ञानिकों द्वारा सिद्ध किया जा रहा है। यिन-यान सूत्र को वृहदारण्यक उपनिषद् में यत्पिण्डे तद् ब्रह्माण्डे के रुप व्यक्त किया गया । जो भारतीय चिकित्सा आयुर्वेद का आधारभूत सूत्र है ।
आगे रति जी लिखती है कि " हम्बूदियार की चिकित्सा विधा को चीनी में "पिनयिन ज्यु" तथा अंग्रेजी में मोक्सीबुशन कहा जाता है। जिसमें Mugwort नामक वनौषधि का धूँवा देकर चिकित्सा की जाती है। मुगवर्ट का बाटनीकल नाम अर्टेमिसिया वल्गेरिस है। जिसे भारत में दवना या दमनक कहा जाता है। इसकी पत्तियाँ सुगंधित होती है,अनेक लोक देवी गीतो में दवना को देवी का प्रिय कहा गया है। आयुर्वेद के अनुसार यह दीपन, पाचक, एण्टीस्पाजमोडिक, आर्तव -जनक, ब्रणनाशक है।
एक और खास बात हम्बूदियार कहती है कि योग देह की प्राकृतिक स्वभाविक स्थिति में लाने की विधा है जिसे भारत में कसरत या एक्सरसाइजन बना दिया गया है। यही बात तो भारत में तंत्र की लोक साधिका नैना जोगिन भी कहती है। रति जी की यह किताब चीनी सभ्यता, परम्परा, राजनीति, समाज, अर्थ, विज्ञान को को समझने के द्वार खोलती है। रति जो पढ़ कर सूत्र सिद्ध होता है कि अच्छा लिखना है तो पढ़ना जरूरी है।-अचल पुलस्तेय
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