बसंतऋतु में स्वास्थ्य
डॉ.अनुश्रीयम कीर्ति
एम.एस.(स्त्री-प्रसूति)
बसंतऋतु (मार्च-अप्रैल) में सूर्य की तीव्र होती किरणों से शिशिर ऋतु में संचित सान्द्र कफ तरल होने लगता है।जिससे पाचाग्नि मंद होकर प्रतिश्याय (फ्लू) श्वास कफ, कफज ज्वर (न्यूमोनिया) आदि कफ प्रकृति के व्यक्तियो में विशेष रुप से संभावित होता है।
वातज प्रकृति के व्यक्तियों कम सम्भावना होती है
पित्तज प्रकृति के व्यक्ति किंचित ही प्रभावित होते है। हवा, एसी
आदि में नहीं जाना चाहिए।
कफ विकार के प्रकोप मे मुँह का
स्वाद मीठा व नमकीन हो जाता है।मितली,अग्निमांद,वमन,आलस्यपूर्ण,शरीर का भारी- -पन, नींद की अधिकता के बाद सर्दी-जुकाम का आभास होता
है।जिसकी उपेक्षा गंभीर रोगों की स्थिति में पहुँचा देती है।
इन लक्षणों का पता चलते ही
इन्हें रोक देना स्वास्थ्य रक्षा के पहले चरण में ही सफलता है । इसके लिए दूषित कफ
को निकालने के लिए वमन करना चाहिए। इसके नाक में जल या तैल (तुवरक तैल, अणुतैल,
षडविन्दु तैल, कटल क्वाथ आदि का प्रयोग किया जाता है। इसके बाद नमक मिले गुनगुने
जल से गरारा करना चाहिये । इसके बाद हल्के जल्दी पचने वाला नास्ता व भोजन करना
चाहिए । भोजन में जौ, गेंहूँ, परवल, आलू, जाँगल जीवो का भुना माँस या माँस रस लेना
पसंद व सुविधानुसार लेना चाहिए। मुनक्का, महुआ आदि औषधियों से बने सिधु, आसव, अरिष्ठ,
सुरा 4 से 6 गुने जल मिला कर लिया जा सकता है ।अदरख, विजयसार, चंदन, शहद,
नागरमोथा, गुर्च, अरुषा, सोंठ, पीपल, कालीमिर्च मिश्रित जल सुबह के समय अवश्य लेना
चाहिए। इसकाल मे व्यायाम,उबटन,अभ्यंग (तैलमालिश) करना चाहिए। गुनगुने जल से स्नान करना
चाहिए।
दोपहर में बागीचों,पुष्पित
फूलों,पक्षियों के साथ खुली हवा मे बिताना चाहिए।
वर्जित आहार विहार
वसंत ऋतु मे देर से पचने वाले.ठंडी वस्तुवे
नास्ता व भोजन,तैल-घी मे तले
खाद्यपदार्थ,अम्लीय पदार्थ जैसे नींबू,ईमली,खटाई,मीठे पदार्थ जैसे मिठाई
आदि,फ्रीज मे रखे पदार्थ. मक्खन, रसदार फल, संतरे, मौसमी,
कोकाकोला, बीयर, केला बिल्कुल नहीं लेना चाहिए । ठंडे प्रदेशों, वातावरण जैसे पंखा एसी का सेवन नहीं करना चाहिए।
0 Comments