पहलगाम हमले के बाद फिर एक बार आतंकवाद के प्रति आक्रोश का माहौल है ।सरकार भी इस माहौल के पक्ष में है,सोसल मीडिया के दौर में आज किसी के पास भी ऐसा समय नहीं है, कि आतंकवाद कारण निवारण की बात करें, इसके विपरीत धर्म से जोड़ कर इसे अलग रंग देने की कोशिश की जा रही है, हालाँकि यह भी एक तरह का आतंकवाद ही तो है,क्योंकि आतंकवाद का उद्देश्य डराना ही होता है, धर्म से जोड़ कर डराया ही तो जा रहा है। इसलिए आतंकवाद को ठीक से समझने के लिए आइये कोशिश करते है।
आज, दुनिया भर में कई आतंकवादी समूह सक्रिय हैं, जिनके
अलग-अलग लक्ष्य और विचारधाराएं हैं। इनमें से कुछ समूह क्षेत्रीय स्वायत्तता या
स्वतंत्रता के लिए लड़ रहे हैं, जबकि अन्य वैश्विक जिहाद या
राजनीतिक व्यवस्था में कट्टरपंथी बदलाव लाना चाहते हैं।
आतंकवाद का इतिहास हिंसा और राजनीतिक उद्देश्यों के जटिल अंतर्संबंध को दर्शाता है। यह एक गतिशील और लगातार विकसित हो रहा खतरा है, जिसने विभिन्न युगों में अलग-अलग रूप लिए हैं। प्रौद्योगिकी में प्रगति और भू-राजनीतिक परिवर्तनों के साथ, आतंकवाद के स्वरूप और तरीकों में बदलाव जारी रहने की संभावना है। इस खतरे का प्रभावी ढंग से मुकाबला करने के लिए इसके ऐतिहासिक संदर्भ और वर्तमान स्वरूप को समझना आवश्यक है।
मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण
आतंकवाद में लिप्त अधिकांश लोग व्यक्तिगत असंतोष, पहचान की तलाश, या किसी प्रकार की क्षति की पूर्ति की चाह से प्रेरित होते हैं। उदाहरण के लिए, अल-कायदा या ISIS जैसे संगठन उन युवाओं को निशाना बनाते हैं जो सामाजिक रूप से अलग-थलग महसूस करते हैं और अपनी पहचान स्थापित करना चाहते हैं।
कट्टरपंथीकरण की प्रक्रिया
कट्टरपंथीकरण एक मानसिक प्रक्रिया है जिसमें व्यक्ति धीरे-धीरे ऐसी विचारधारा अपना लेता है जो हिंसा को वैध मानती है। यह प्रक्रिया सोशल मीडिया, धार्मिक प्रचार, या समूह दबाव से तेज़ हो सकती है। यूरोप में कई मामलों में यह देखा गया कि मुस्लिम प्रवासी युवक कट्टरपंथी प्रचारकों के प्रभाव में आकर ISIS से जुड़ गए।
मानसिक स्वास्थ्य और अकेलापन
हालाँकि सभी आतंकवादी मानसिक रूप से अस्वस्थ नहीं होते, परंतु मानसिक असंतुलन या सामाजिक अलगाव की भूमिका को नकारा नहीं जा सकता। अमेरिका में ‘लोन वुल्फ’ हमलों में यह अक्सर देखा गया है कि हमलावर सामाजिक रूप से अलग-थलग, क्रोधित या भ्रमित मानसिक स्थिति में था।
राजनीतिक
दृष्टिकोण
सत्ता का संघर्ष
कई बार आतंकवाद का उद्देश्य सत्ता पर नियंत्रण प्राप्त करना होता है। जैसे श्रीलंका में LTTE ने एक स्वतंत्र तमिल राज्य की माँग को लेकर कई वर्षों तक हिंसक संघर्ष किया। यह एक स्पष्ट उदाहरण है कि कैसे आतंकवाद राजनीतिक स्वार्थों का साधन बनता है।
राज्य और विरोधी की परिभाषा
एक ही कृत्य को कोई "स्वतंत्रता संग्राम" मान सकता है, जबकि दूसरा उसे "आतंकवाद" कहेगा। जैसे भारत में अंग्रेज़ों के खिलाफ क्रांतिकारियों की हिंसा को अंग्रेज आतंकवाद कहते थे, पर भारत उन्हें स्वतंत्रता सेनानी मानता है।
वैश्विक राजनीति का प्रभाव
अमेरिका और सोवियत संघ की शीत युद्धकालीन रणनीतियों ने कई क्षेत्रों में आतंकवाद को जन्म दिया। उदाहरण के लिए, अफगानिस्तान में मुजाहिदीन को हथियार देने से जो अस्थिरता उत्पन्न हुई, उसने आगे चलकर तालिबान और अल-कायदा जैसे संगठनों को जन्म दिया।
सामाजिक दृष्टिकोण
हाशिये पर जी रहे समुदाय
आर्थिक या सामाजिक रूप से पिछड़े समुदायों में आतंकवाद पनपने की संभावना अधिक होती है। उन्हें लगता है कि मुख्यधारा समाज में उनकी कोई पहचान या शक्ति नहीं है। यह असंतोष कट्टरपंथी संगठनों द्वारा भुनाया जाता है।
सामुदायिक पहचान और एकजुटता
आतंकवादी संगठन भावनात्मक जुड़ाव और समूह पहचान के नाम पर लोगों को अपने साथ जोड़ते हैं। उदाहरणस्वरूप, पाकिस्तान में TTP (Tehrik-e-Taliban Pakistan) युवाओं को 'इस्लाम की रक्षा' के नाम पर संगठित करता है।
सामाजिक तनाव
भारत में नक्सलवाद एक उदाहरण है जहाँ आदिवासी समुदायों की उपेक्षा, ज़मीन की लूट और अधिकारों के हनन ने सामाजिक तनाव को जन्म दिया, जिसे उग्रवाद का रूप दे दिया गया।
धार्मिक दृष्टिकोण
धार्मिक ग्रंथों की कट्टरपंथी व्याख्या-ISIS और अल-कायदा जैसे संगठन इस्लामी ग्रंथों की गलत और उग्र व्याख्या कर लोगों को हिंसा के लिए उकसाते हैं। वे "जिहाद" जैसे शब्दों को आतंक फैलाने का औजार बनाते हैं, जबकि इसका मूल अर्थ आत्मसंयम और आंतरिक संघर्ष है।
धार्मिक एकता के नाम पर उकसाना-धार्मिक पहचान को हथियार बना कर संगठन लोगों को यह अहसास कराते हैं कि उनका धर्म खतरे में है और उसे बचाना आवश्यक है। यह भावना आतंकवाद में धकेल सकती है।
धार्मिकता बनाम आतंकवाद
यह ध्यान देना ज़रूरी है कि आतंकवाद का धर्म से सीधा संबंध नहीं है। दुनिया के लगभग सभी धर्मों में कुछ न कुछ हिंसक तत्वों ने आतंकवाद को अपना लिया है—चाहे वह बौद्ध बहुसंख्यक श्रीलंका में तमिलों के खिलाफ हिंसा हो, या म्यांमार में रोहिंग्या मुसलमानों के खिलाफ बौद्ध राष्ट्रवाद।
गरीबी और बेरोजगारी का दुष्प्रभाव
आर्थिक रूप से पिछड़े क्षेत्रों में युवाओं को प्रलोभन देकर आतंकवादी गतिविधियों में शामिल करना आसान हो जाता है। पाकिस्तान और अफगानिस्तान की मदरसों में ऐसे कई उदाहरण मिलते हैं जहाँ युवाओं को पैसे, सम्मान और ‘स्वर्ग’ का वादा देकर तैयार किया जाता है।
आतंकवाद का वित्तपोषण
आतंकवादी संगठन नशीले पदार्थों की तस्करी, हथियारों की अवैध बिक्री, और अवैध कर वसूली से अपना वित्तपोषण करते हैं। उदाहरण: हिज्बुल्लाह जैसे संगठन दक्षिण अमेरिका के ड्रग कार्टेल से संबंध रखते हैं।
वैश्विक आर्थिक असमानता-अफ्रीका, मध्य एशिया, और मध्य पूर्व जैसे क्षेत्रों में संसाधनों के असमान वितरण और बहुराष्ट्रीय कंपनियों के अत्यधिक दोहन ने असंतोष को जन्म दिया, जिसे आतंकवादी समूहों ने हथियार बना लिया।
भौगोलिक दृष्टिकोण
संकटग्रस्त क्षेत्र और सीमा विवाद
सीरिया, इराक, अफगानिस्तान, और पाकिस्तान जैसे अस्थिर राज्यों की भौगोलिक स्थिति आतंकवाद के लिए उपजाऊ ज़मीन बन गई है। सीमा विवादों और कमजोर प्रशासन के कारण ये क्षेत्र आतंकियों के छिपने और प्रशिक्षण के लिए आदर्श बन जाते हैं।
प्राकृतिक संसाधनों का संघर्ष
नाइजीरिया में बोको हराम और मिडल ईस्ट में ISIS जैसे संगठन तेल और गैस जैसे संसाधनों पर नियंत्रण स्थापित करने के लिए आतंक का सहारा लेते हैं।
शहरी बनाम ग्रामीण रणनीति
शहरी क्षेत्र आतंकवादियों के लिए अधिकतम मीडिया कवरेज और भय फैलाने के लिए उपयुक्त होते हैं, जबकि ग्रामीण क्षेत्र गुप्त संचालन, प्रशिक्षण और रिक्रूटमेंट के लिए आदर्श माने जाते हैं।
वैज्ञानिक और तकनीकी दृष्टिकोण
तकनीक का प्रयोग
आधुनिक आतंकवादी संगठन इंटरनेट, सोशल मीडिया और डार्क वेब का उपयोग प्रचार, भर्ती और धन एकत्र करने के लिए करते हैं। उदाहरण: ISIS का डिजिटल प्रचार तंत्र युवाओं को आकर्षित करने में अत्यंत सफल रहा।
हथियारों और विस्फोटकों की उन्नति
आज आतंकवादी DIY (Do It Yourself) बम, ड्रोन अटैक और IED जैसे तकनीकी साधनों से हमले कर सकते हैं। 2019 में सऊदी अरब की तेल फैक्ट्रियों पर ड्रोन हमलों ने इस खतरे को उजागर किया।
जैविक और रासायनिक हथियारों की आशंका
2001 में अमेरिका में भेजे गए एन्थ्रैक्स (Anthrax) से भरे पत्रों ने यह दिखाया कि वैज्ञानिक ज्ञान का दुरुपयोग बड़े पैमाने पर भय और क्षति पहुंचाने के लिए किया जा सकता है। आतंकवाद एक ऐसा खतरा है जिसने आधुनिक विश्व को त्रस्त कर रखा है। पारंपरिक हथियारों के साथ-साथ, जैविक और रासायनिक हथियारों का आतंकवादियों द्वारा उपयोग किए जाने की आशंका ने सुरक्षा एजेंसियों और सरकारों की चिंताएं बढ़ा दी हैं। ये हथियार, अपनी व्यापक विनाशकारी क्षमता के कारण, निर्दोष नागरिकों के बीच बड़े पैमाने पर भय और अराजकता पैदा करने की क्षमता रखते हैं।
जैविक हथियार: जैविक हथियार ऐसे रोगजनक सूक्ष्मजीव (जैसे बैक्टीरिया, वायरस, कवक) या विषाक्त पदार्थ होते हैं जिनका उपयोग मनुष्यों, जानवरों या पौधों में बीमारी और मृत्यु फैलाने के लिए किया जाता है। आतंकवादियों के लिए, जैविक हथियार कई कारणों से आकर्षक हो सकते हैं:
अदृश्यता: जैविक एजेंटों को गुप्त रूप से फैलाया जा सकता है और उनके प्रभाव दिखने में समय लग सकता है, जिससे हमलावर की पहचान मुश्किल हो जाती है।
व्यापक प्रभाव: थोड़ी मात्रा में जैविक एजेंट भी बड़ी संख्या में लोगों को बीमार कर सकते हैं।
मनोवैज्ञानिक प्रभाव: जैविक हमले का डर और अनिश्चितता समाज में व्यापक आतंक पैदा कर सकती है।
हालांकि, जैविक हथियारों को विकसित और प्रभावी ढंग से तैनात करना तकनीकी रूप से चुनौतीपूर्ण हो सकता है। एजेंटों को स्थिर, हथियार योग्य और प्रभावी ढंग से फैलाने की आवश्यकता होती है। फिर भी, कुछ आतंकवादी समूहों द्वारा बुनियादी जैविक एजेंटों या दूषित पदार्थों का उपयोग करने की संभावना को नकारा नहीं जा सकता है।
रासायनिक हथियार: रासायनिक हथियार ऐसे रसायन होते हैं जिनका उपयोग उनके विषैले गुणों के कारण मृत्यु या क्षति पहुंचाने के लिए किया जाता है। इनमें तंत्रिका एजेंट (जैसे सरीन), छाला एजेंट (जैसे मस्टर्ड गैस), रक्त एजेंट (जैसे हाइड्रोजन साइनाइड) और घुटन एजेंट (जैसे क्लोरीन, फॉस्जीन) शामिल हैं। आतंकवादियों के लिए रासायनिक हथियार निम्नलिखित कारण से चिंता का विषय हैं:
तुलनात्मक रूप से आसान उपलब्धता: कुछ औद्योगिक रसायनों को हथियार के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है और वे अपेक्षाकृत आसानी से प्राप्त किए जा सकते हैं।
तत्काल प्रभाव: रासायनिक हथियारों का प्रभाव आमतौर पर तत्काल होता है, जिससे कम समय में अधिक नुकसान पहुंचाया जा सकता है।
मनोवैज्ञानिक प्रभाव: रासायनिक हमले की भयावहता और पीड़ितों की पीड़ा गहरा मनोवैज्ञानिक आघात पहुंचा सकती है।
आतंकवादी समूहों द्वारा पहले भी सीमित पैमाने पर रासायनिक हथियारों का उपयोग करने के प्रयास किए गए हैं। हालांकि, बड़े पैमाने पर और प्रभावी रासायनिक हमला करने के लिए तकनीकी विशेषज्ञता और संसाधनों की आवश्यकता होती है, जो आमतौर पर आतंकवादी समूहों के पास सीमित होते हैं।
आशंका और चुनौतियां: जैविक और रासायनिक हथियारों के आतंकवाद में प्रयोग की आशंका कई महत्वपूर्ण चुनौतियां पेश करती है:
जैविक या रासायनिक हमले के शुरुआती चरणों में इसकी पहचान करना मुश्किल हो सकता है, खासकर तब जब लक्षण सामान्य बीमारियों जैसे लगें।
प्रतिक्रिया और प्रबंधन: ऐसे हमलों के लिए प्रभावी चिकित्सा प्रतिक्रिया और सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रबंधन की आवश्यकता होती है, जिसके लिए विशेष प्रशिक्षण और संसाधनों की आवश्यकता होती है।
अंतर्राष्ट्रीय सहयोग: जैविक और रासायनिक हथियारों के प्रसार को रोकने और ऐसे हमलों का मुकाबला करने के लिए अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर घनिष्ठ सहयोग आवश्यक है।
निष्कर्ष-आतंकवाद एक बहुआयामी चुनौती है जिसे किसी एक परिप्रेक्ष्य से नहीं समझा जा सकता। इसके पीछे मनोवैज्ञानिक पीड़ा, सामाजिक बहिष्कार, राजनीतिक स्वार्थ, धार्मिक कट्टरता, आर्थिक शोषण, भौगोलिक अस्थिरता और वैज्ञानिक दुरुपयोग जैसे अनेक कारक एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं। इस जटिल समस्या से निपटने के लिए वैश्विक स्तर पर समन्वित, समग्र और संवेदनशील रणनीति की आवश्यकता है। केवल सैन्य उपायों से आतंकवाद की जड़ों को नहीं मिटाया जा सकता, बल्कि सामाजिक न्याय, शिक्षा, रोजगार, और मानसिक स्वास्थ्य जैसी मूलभूत ज़रूरतों की पूर्ति से ही स्थायी समाधान निकाला जा सकता है।
*लेखक हरियाणा निवासी एक प्रबुद्ध नागरिक है।
आतंकवाद का इतिहास हिंसा और राजनीतिक उद्देश्यों के जटिल अंतर्संबंध को दर्शाता है। यह एक गतिशील और लगातार विकसित हो रहा खतरा है, जिसने विभिन्न युगों में अलग-अलग रूप लिए हैं। प्रौद्योगिकी में प्रगति और भू-राजनीतिक परिवर्तनों के साथ, आतंकवाद के स्वरूप और तरीकों में बदलाव जारी रहने की संभावना है। इस खतरे का प्रभावी ढंग से मुकाबला करने के लिए इसके ऐतिहासिक संदर्भ और वर्तमान स्वरूप को समझना आवश्यक है।
मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण
आतंकवाद में लिप्त अधिकांश लोग व्यक्तिगत असंतोष, पहचान की तलाश, या किसी प्रकार की क्षति की पूर्ति की चाह से प्रेरित होते हैं। उदाहरण के लिए, अल-कायदा या ISIS जैसे संगठन उन युवाओं को निशाना बनाते हैं जो सामाजिक रूप से अलग-थलग महसूस करते हैं और अपनी पहचान स्थापित करना चाहते हैं।
कट्टरपंथीकरण की प्रक्रिया
कट्टरपंथीकरण एक मानसिक प्रक्रिया है जिसमें व्यक्ति धीरे-धीरे ऐसी विचारधारा अपना लेता है जो हिंसा को वैध मानती है। यह प्रक्रिया सोशल मीडिया, धार्मिक प्रचार, या समूह दबाव से तेज़ हो सकती है। यूरोप में कई मामलों में यह देखा गया कि मुस्लिम प्रवासी युवक कट्टरपंथी प्रचारकों के प्रभाव में आकर ISIS से जुड़ गए।
मानसिक स्वास्थ्य और अकेलापन
हालाँकि सभी आतंकवादी मानसिक रूप से अस्वस्थ नहीं होते, परंतु मानसिक असंतुलन या सामाजिक अलगाव की भूमिका को नकारा नहीं जा सकता। अमेरिका में ‘लोन वुल्फ’ हमलों में यह अक्सर देखा गया है कि हमलावर सामाजिक रूप से अलग-थलग, क्रोधित या भ्रमित मानसिक स्थिति में था।
सत्ता का संघर्ष
कई बार आतंकवाद का उद्देश्य सत्ता पर नियंत्रण प्राप्त करना होता है। जैसे श्रीलंका में LTTE ने एक स्वतंत्र तमिल राज्य की माँग को लेकर कई वर्षों तक हिंसक संघर्ष किया। यह एक स्पष्ट उदाहरण है कि कैसे आतंकवाद राजनीतिक स्वार्थों का साधन बनता है।
राज्य और विरोधी की परिभाषा
एक ही कृत्य को कोई "स्वतंत्रता संग्राम" मान सकता है, जबकि दूसरा उसे "आतंकवाद" कहेगा। जैसे भारत में अंग्रेज़ों के खिलाफ क्रांतिकारियों की हिंसा को अंग्रेज आतंकवाद कहते थे, पर भारत उन्हें स्वतंत्रता सेनानी मानता है।
वैश्विक राजनीति का प्रभाव
अमेरिका और सोवियत संघ की शीत युद्धकालीन रणनीतियों ने कई क्षेत्रों में आतंकवाद को जन्म दिया। उदाहरण के लिए, अफगानिस्तान में मुजाहिदीन को हथियार देने से जो अस्थिरता उत्पन्न हुई, उसने आगे चलकर तालिबान और अल-कायदा जैसे संगठनों को जन्म दिया।
सामाजिक दृष्टिकोण
हाशिये पर जी रहे समुदाय
आर्थिक या सामाजिक रूप से पिछड़े समुदायों में आतंकवाद पनपने की संभावना अधिक होती है। उन्हें लगता है कि मुख्यधारा समाज में उनकी कोई पहचान या शक्ति नहीं है। यह असंतोष कट्टरपंथी संगठनों द्वारा भुनाया जाता है।
सामुदायिक पहचान और एकजुटता
आतंकवादी संगठन भावनात्मक जुड़ाव और समूह पहचान के नाम पर लोगों को अपने साथ जोड़ते हैं। उदाहरणस्वरूप, पाकिस्तान में TTP (Tehrik-e-Taliban Pakistan) युवाओं को 'इस्लाम की रक्षा' के नाम पर संगठित करता है।
सामाजिक तनाव
भारत में नक्सलवाद एक उदाहरण है जहाँ आदिवासी समुदायों की उपेक्षा, ज़मीन की लूट और अधिकारों के हनन ने सामाजिक तनाव को जन्म दिया, जिसे उग्रवाद का रूप दे दिया गया।
धार्मिक दृष्टिकोण
धार्मिक ग्रंथों की कट्टरपंथी व्याख्या-ISIS और अल-कायदा जैसे संगठन इस्लामी ग्रंथों की गलत और उग्र व्याख्या कर लोगों को हिंसा के लिए उकसाते हैं। वे "जिहाद" जैसे शब्दों को आतंक फैलाने का औजार बनाते हैं, जबकि इसका मूल अर्थ आत्मसंयम और आंतरिक संघर्ष है।
धार्मिक एकता के नाम पर उकसाना-धार्मिक पहचान को हथियार बना कर संगठन लोगों को यह अहसास कराते हैं कि उनका धर्म खतरे में है और उसे बचाना आवश्यक है। यह भावना आतंकवाद में धकेल सकती है।
धार्मिकता बनाम आतंकवाद
यह ध्यान देना ज़रूरी है कि आतंकवाद का धर्म से सीधा संबंध नहीं है। दुनिया के लगभग सभी धर्मों में कुछ न कुछ हिंसक तत्वों ने आतंकवाद को अपना लिया है—चाहे वह बौद्ध बहुसंख्यक श्रीलंका में तमिलों के खिलाफ हिंसा हो, या म्यांमार में रोहिंग्या मुसलमानों के खिलाफ बौद्ध राष्ट्रवाद।
गरीबी और बेरोजगारी का दुष्प्रभाव
आर्थिक रूप से पिछड़े क्षेत्रों में युवाओं को प्रलोभन देकर आतंकवादी गतिविधियों में शामिल करना आसान हो जाता है। पाकिस्तान और अफगानिस्तान की मदरसों में ऐसे कई उदाहरण मिलते हैं जहाँ युवाओं को पैसे, सम्मान और ‘स्वर्ग’ का वादा देकर तैयार किया जाता है।
आतंकवाद का वित्तपोषण
आतंकवादी संगठन नशीले पदार्थों की तस्करी, हथियारों की अवैध बिक्री, और अवैध कर वसूली से अपना वित्तपोषण करते हैं। उदाहरण: हिज्बुल्लाह जैसे संगठन दक्षिण अमेरिका के ड्रग कार्टेल से संबंध रखते हैं।
वैश्विक आर्थिक असमानता-अफ्रीका, मध्य एशिया, और मध्य पूर्व जैसे क्षेत्रों में संसाधनों के असमान वितरण और बहुराष्ट्रीय कंपनियों के अत्यधिक दोहन ने असंतोष को जन्म दिया, जिसे आतंकवादी समूहों ने हथियार बना लिया।
भौगोलिक दृष्टिकोण
संकटग्रस्त क्षेत्र और सीमा विवाद
सीरिया, इराक, अफगानिस्तान, और पाकिस्तान जैसे अस्थिर राज्यों की भौगोलिक स्थिति आतंकवाद के लिए उपजाऊ ज़मीन बन गई है। सीमा विवादों और कमजोर प्रशासन के कारण ये क्षेत्र आतंकियों के छिपने और प्रशिक्षण के लिए आदर्श बन जाते हैं।
प्राकृतिक संसाधनों का संघर्ष
नाइजीरिया में बोको हराम और मिडल ईस्ट में ISIS जैसे संगठन तेल और गैस जैसे संसाधनों पर नियंत्रण स्थापित करने के लिए आतंक का सहारा लेते हैं।
शहरी बनाम ग्रामीण रणनीति
शहरी क्षेत्र आतंकवादियों के लिए अधिकतम मीडिया कवरेज और भय फैलाने के लिए उपयुक्त होते हैं, जबकि ग्रामीण क्षेत्र गुप्त संचालन, प्रशिक्षण और रिक्रूटमेंट के लिए आदर्श माने जाते हैं।
वैज्ञानिक और तकनीकी दृष्टिकोण
तकनीक का प्रयोग
आधुनिक आतंकवादी संगठन इंटरनेट, सोशल मीडिया और डार्क वेब का उपयोग प्रचार, भर्ती और धन एकत्र करने के लिए करते हैं। उदाहरण: ISIS का डिजिटल प्रचार तंत्र युवाओं को आकर्षित करने में अत्यंत सफल रहा।
हथियारों और विस्फोटकों की उन्नति
आज आतंकवादी DIY (Do It Yourself) बम, ड्रोन अटैक और IED जैसे तकनीकी साधनों से हमले कर सकते हैं। 2019 में सऊदी अरब की तेल फैक्ट्रियों पर ड्रोन हमलों ने इस खतरे को उजागर किया।
जैविक और रासायनिक हथियारों की आशंका
2001 में अमेरिका में भेजे गए एन्थ्रैक्स (Anthrax) से भरे पत्रों ने यह दिखाया कि वैज्ञानिक ज्ञान का दुरुपयोग बड़े पैमाने पर भय और क्षति पहुंचाने के लिए किया जा सकता है। आतंकवाद एक ऐसा खतरा है जिसने आधुनिक विश्व को त्रस्त कर रखा है। पारंपरिक हथियारों के साथ-साथ, जैविक और रासायनिक हथियारों का आतंकवादियों द्वारा उपयोग किए जाने की आशंका ने सुरक्षा एजेंसियों और सरकारों की चिंताएं बढ़ा दी हैं। ये हथियार, अपनी व्यापक विनाशकारी क्षमता के कारण, निर्दोष नागरिकों के बीच बड़े पैमाने पर भय और अराजकता पैदा करने की क्षमता रखते हैं।
जैविक हथियार: जैविक हथियार ऐसे रोगजनक सूक्ष्मजीव (जैसे बैक्टीरिया, वायरस, कवक) या विषाक्त पदार्थ होते हैं जिनका उपयोग मनुष्यों, जानवरों या पौधों में बीमारी और मृत्यु फैलाने के लिए किया जाता है। आतंकवादियों के लिए, जैविक हथियार कई कारणों से आकर्षक हो सकते हैं:
अदृश्यता: जैविक एजेंटों को गुप्त रूप से फैलाया जा सकता है और उनके प्रभाव दिखने में समय लग सकता है, जिससे हमलावर की पहचान मुश्किल हो जाती है।
व्यापक प्रभाव: थोड़ी मात्रा में जैविक एजेंट भी बड़ी संख्या में लोगों को बीमार कर सकते हैं।
मनोवैज्ञानिक प्रभाव: जैविक हमले का डर और अनिश्चितता समाज में व्यापक आतंक पैदा कर सकती है।
हालांकि, जैविक हथियारों को विकसित और प्रभावी ढंग से तैनात करना तकनीकी रूप से चुनौतीपूर्ण हो सकता है। एजेंटों को स्थिर, हथियार योग्य और प्रभावी ढंग से फैलाने की आवश्यकता होती है। फिर भी, कुछ आतंकवादी समूहों द्वारा बुनियादी जैविक एजेंटों या दूषित पदार्थों का उपयोग करने की संभावना को नकारा नहीं जा सकता है।
रासायनिक हथियार: रासायनिक हथियार ऐसे रसायन होते हैं जिनका उपयोग उनके विषैले गुणों के कारण मृत्यु या क्षति पहुंचाने के लिए किया जाता है। इनमें तंत्रिका एजेंट (जैसे सरीन), छाला एजेंट (जैसे मस्टर्ड गैस), रक्त एजेंट (जैसे हाइड्रोजन साइनाइड) और घुटन एजेंट (जैसे क्लोरीन, फॉस्जीन) शामिल हैं। आतंकवादियों के लिए रासायनिक हथियार निम्नलिखित कारण से चिंता का विषय हैं:
तुलनात्मक रूप से आसान उपलब्धता: कुछ औद्योगिक रसायनों को हथियार के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है और वे अपेक्षाकृत आसानी से प्राप्त किए जा सकते हैं।
तत्काल प्रभाव: रासायनिक हथियारों का प्रभाव आमतौर पर तत्काल होता है, जिससे कम समय में अधिक नुकसान पहुंचाया जा सकता है।
मनोवैज्ञानिक प्रभाव: रासायनिक हमले की भयावहता और पीड़ितों की पीड़ा गहरा मनोवैज्ञानिक आघात पहुंचा सकती है।
आतंकवादी समूहों द्वारा पहले भी सीमित पैमाने पर रासायनिक हथियारों का उपयोग करने के प्रयास किए गए हैं। हालांकि, बड़े पैमाने पर और प्रभावी रासायनिक हमला करने के लिए तकनीकी विशेषज्ञता और संसाधनों की आवश्यकता होती है, जो आमतौर पर आतंकवादी समूहों के पास सीमित होते हैं।
आशंका और चुनौतियां: जैविक और रासायनिक हथियारों के आतंकवाद में प्रयोग की आशंका कई महत्वपूर्ण चुनौतियां पेश करती है:
जैविक या रासायनिक हमले के शुरुआती चरणों में इसकी पहचान करना मुश्किल हो सकता है, खासकर तब जब लक्षण सामान्य बीमारियों जैसे लगें।
प्रतिक्रिया और प्रबंधन: ऐसे हमलों के लिए प्रभावी चिकित्सा प्रतिक्रिया और सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रबंधन की आवश्यकता होती है, जिसके लिए विशेष प्रशिक्षण और संसाधनों की आवश्यकता होती है।
अंतर्राष्ट्रीय सहयोग: जैविक और रासायनिक हथियारों के प्रसार को रोकने और ऐसे हमलों का मुकाबला करने के लिए अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर घनिष्ठ सहयोग आवश्यक है।
निष्कर्ष-आतंकवाद एक बहुआयामी चुनौती है जिसे किसी एक परिप्रेक्ष्य से नहीं समझा जा सकता। इसके पीछे मनोवैज्ञानिक पीड़ा, सामाजिक बहिष्कार, राजनीतिक स्वार्थ, धार्मिक कट्टरता, आर्थिक शोषण, भौगोलिक अस्थिरता और वैज्ञानिक दुरुपयोग जैसे अनेक कारक एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं। इस जटिल समस्या से निपटने के लिए वैश्विक स्तर पर समन्वित, समग्र और संवेदनशील रणनीति की आवश्यकता है। केवल सैन्य उपायों से आतंकवाद की जड़ों को नहीं मिटाया जा सकता, बल्कि सामाजिक न्याय, शिक्षा, रोजगार, और मानसिक स्वास्थ्य जैसी मूलभूत ज़रूरतों की पूर्ति से ही स्थायी समाधान निकाला जा सकता है।
*लेखक हरियाणा निवासी एक प्रबुद्ध नागरिक है।
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