भीड़ में दुर्घटना के बीज आग की चिन्गारी की तरह छिपी होती है,

समाजशास्त्री हर्बर्ट ब्लूमर भीड़ का अध्ययन करने के बाद कहते है कि भावनात्मक तीव्रता की प्रणाली है। आगे  ब्लूमर भीड़ को चार वर्ग में बाँटते हैं।


1-अनौपचारिक- लोगों का एक समूह जो एक ही समय में एक ही स्थान पर होता है उसे अनौपचारिक भीड़ के रूप में जाना जाता है। इस तरह की भीड़ में किसी वास्तविक पहचान, दीर्घकालिक लक्ष्य या साझा कनेक्शन का अभाव होता है।

2-पारंपरिक-  किसी विशेष कारण से एक साथ आने वाले व्यक्तियों के समूह को पारंपरिक भीड़ के रूप में जाना जाता है। वे किसी थिएटर, संगीत कार्यक्रम, फिल्म या व्याख्यान में जा सकते हैं। एरिच गोडे के अनुसार , पारंपरिक भीड़ बहुत ही पारंपरिक और इसलिए कुछ हद तक संरचित तरीके से व्यवहार करती है; जैसा कि उनके नाम से पता चलता है, वे वास्तव में सामूहिक व्यवहार नहीं करते हैं।

3-अभिव्यंजक-लोगों का एक समूह जो केवल अपने उत्साह और भावनाओं को दिखाने के लिए एक साथ  आते हैं

4- सक्रिय- अभिनय भीड़ का एक मुख्य उदाहरण भीड़ है, जो एक अत्यंत भावनात्मक समूह है जो या तो हिंसा करता है या करने के लिए तैयार रहता है। लोगों का एक समूह जो केवल अपने उत्साह और भावनाओं को दिखाने के लिए एक साथ  आते हैं अभिनय भीड़ का एक मुख्य उदाहरण भीड़ है, जो एक अत्यंत भावनात्मक समूह है जो या तो हिंसा करता है या करने के लिए तैयार रहता है।

 भीड़ समय के साथ अपनी भावनात्मक तीव्रता के स्तर को बदलती है, और इसलिए, इसे चार प्रकारों में से किसी एक में वर्गीकृत किया जा सकता है।

ले बॉन के अनुसार विचार कि भीड़ गुमनामी को बढ़ावा देती है और भावनाएँ पैदा करती है ।

क्लार्क मैकफेल ने अनेक  अध्ययनों का निष्कर्ष निकालते हुए कहते हैं कि "पागल भीड़" सदस्यों के विचारों और इरादों के अलावा, अपना जीवन नहीं जीती है।

सिगमंड फ्रायड का कहना है कि भीड़ का सदस्य बनना अचेतन मन को खोलने का काम करता है। ऐसा इसलिए होता है कि सुपर-अहंकार , या चेतना का नैतिक केंद्र, बड़ी भीड़ द्वारा विस्थापित हो जाता है, जिसे एक करिश्माई भीड़ नेता द्वारा प्रतिस्थापित किया जाता है।

मैकडॉगल फ्रायड के समान तर्क देते हैं, कि सरलीकृत भावनाएँ व्यापक हैं, और जटिल भावनाएँ दुर्लभ हो जाती हैं । भीड़ में, समग्र साझा भावनात्मक अनुभव कम से कम सामान्य भाजक (एलसीडी) में बदल जाता है, जिससे भावनात्मक अभिव्यक्ति के आदिम स्तर पर पहुंच जाता है। यह संगठनात्मक संरचना "आदिम भीड़" - पूर्व-सभ्य समाज की है - और फ्रायड कहते हैं कि इससे बचने के लिए व्यक्ति को नेता के खिलाफ विद्रोह करना चाहिए।

भीड़ के मनोविज्ञान का अध्ययन करने वाले अनेक मनो-सामाजिक विज्ञानियों के विचार से यह सहज निष्कर्ष निकलता है.भीड़ में दुर्घटना के बीज आग की चिन्गारी की तरह छिपी होती है,जो तनिक हवा लगते दावानल बन जाती है। इसलिए स्वफूर्त भीड़ हो या प्रायोजित आयोजित, उसके दुर्घटना के लिए प्रायोजक-आयोजक और प्रेरक ही जिम्मेदार होते है,क्योंकि भीड़ का लाभार्थी भी वही होते हैं।-पुलस्तेय*

(*पुलस्तेय लेखक,कवि,व स्वतंत्र विचारक हैं।

 

 

 

 


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