पत्रकारिता का विश्वास संकट-अचल पुलस्तेय के उपन्यास -कोरोना कालकथा-स्वर्ग में सेमीनार का अंश

आनलाईन अमेजन स्टोर पर उपलब्ध है यह उपन्यास पढ़ने के लिए आर्डर करे।

https://www.amazon.in/-/hi/Achal-Pulastey-R-Achal/dp/9390445868

धर्मवीर भारती

मण्डप शान्त हुआ,महर्षि पुलस्त्य संगोष्ठी को आगे बढ़ाते हुए बोले-

विश्वकल्याण चिंतक मनीषियों ! समस्त भुवन में किसी आपद-व्यापद काल में सूचनाओं-संदेशो का विशेष महत्व होता है।सूचनायें-संदेश ही प्रजा और राजव्यस्था के मध्य सेतु होती है।यथार्थ सूचनायें हीं व्यवस्था की सफलता व नीति निर्धारण के लिए मार्गदर्शक होती है। इसीलिए देवलोक में भी सूचना-संदेशो के संचरण की व्यवस्था है।विष्णु लोक में ऋषि नारद, शिवलोक में स्वछन्द भैरव तथा शक्तिलोक में आकाशभैरवी, त्रयलोक्य में सूचनाओं के प्रसारण, प्रजा व व्यवस्था से समन्वय का दायित्व निर्वहन करते है।

भूलोक में भी सूचनाओं के लिए कुछ मानव कार्य करते हैं,जिन्हे पत्रकार कहा जाता है।वर्तमान भूलोक की सूचना तकनीक व तंत्र अति विकसित स्वरुप में है।भूलोक में अति प्रभावी दृश्य माध्यम(टीवी) हैं जो पहले केवल स्वर्ग में ही हुआ करते था।

 व्यापद काल  में सूचनाओं व संदेशो की क्या भूमिका है,कैसी पत्रकारिता होनी चाहिए तथा क्या प्रभाव है,इन्ही प्रश्नों संबंधित प्रस्तुतिकरण के लिए मेरे पास एक प्रतिभागी आत्मा का निवेदन प्राप्त हुआ है।जिसे पीठसीन अध्यक्ष शक्ति लोपामुद्र से अनुमति से अवसर प्रदान कर रहा हूँ।

इस दिव्याआत्मा को भूलोक में धर्मवीर नाम से जाना जाता है।जो पृथ्वी ग्रह पर स्थानिक कालगणनानुसार  1926 - 4 सितंबर, 1997ई.तक रहे।समाज,संस्कृति,विज्ञान,आपद,व्यापद की सूचना-संदेशो के माध्यम से अपने दायित्व का निर्वहन किया है,धर्मवीर भारती !

 परिचय के पश्चात धर्मवीर भारती पटल पहुँचकर उपस्थित ऋषि-महर्षि,ज्ञान-विज्ञान वैभव से ओतप्रोत दिव्य आत्माओं का प्रणाम कर बोले-

महात्मन! मनुष्य ही नहीं,समस्त जीव जगत सूचनाओं व संदेशो से ही गतिशील होता है। सूचनायें जीव में संवेदना व उद्दपन उत्पन्न करती है।उसकी प्रतिक्रिया में जीव व्यवहार करता है। यह क्रिया प्रत्येक जीव मे घटित होती है,जो सूचनाओं के प्रेषण व ग्रहण में असमर्थ होता है, वह पार्थिव या निर्जीव कहलाता है।

   सूचनाओं के प्रेषण और ग्रहण से ही मनुष्य का समाज,समुदाय,देश,विश्व,सत्ता,जनजीवन संचालित होता है।उसका कार्य-व्यवहार, समाज, अर्थ, राजनीति, इतिहास, भूगोल, प्रकृति, विकृति सभी निर्धारित व संचालित होते है।सूचनाओं की प्रक़ृति से ही शासन व जनता के संबंध निर्धारित होता है।

  सूचनाओं के प्रसार से ही वर्तमान स्वतंत्र प्रजातांत्रिक विशाल भारत खण्ड का निर्माण संभव हुआ है।अजेय ब्रिटिश साम्राज्य का पतन हुआ था।अनेक स्वतंत्र देशों का जन्म हुआ था,जैसा कि महर्षि पुलस्त्य ने बताया कि स्वर्ग में ऋषि नारद,स्वच्छन्द भैरव,आकाश भैरवी जनसंचार के माध्यम है।उसी प्रकार स्वतंत्र सूचना तंत्र आम जनता का शक्तिशाली अस्त्र होता है।

महामारी काल में जनसंचार माध्यम जनता के आत्मबल की वृद्धि कर, प्राण रक्षा करने में सहायक होते है,इसके विपरीत यदि भय,संदेह, अविश्वास,अफवाह,भ्रम उत्पन्न करने लगते है तो महामारी से भी धातक सिद्ध होते हैं।

हमारे काल में मिडिया जनता की आवाज थी ।पूरे विश्व में जनसंचार माध्यमों के कारण ही क्रांतियां हुई,मनुष्यता का विकास हुआ।अतीतकाल में जनसंचार माध्यमों ने प्लेग,हैजा, स्पेनिश फ्लू, कालाजार, पोलियो,मलेरिया को नियंत्रित करने में महत्वपूर्ण सहयोग दिया,नये शोधों, औषधियों का प्रसार करके जनता को भय-भ्रम से मुक्त करने का दायित्व निर्वहन किया। जनसंचार माध्यमों के इस शक्ति को भाँपते हुए पिछली शताब्दी से ही शासकों व व्यापारियों ने उस पर अधिकार करने का षडयंत्र करना शुरु कर दिया।जिसके परिणाम स्वरुप अब  जनसंचार माध्यम न होकर राज-व्यापार माध्यम हो चुका है।जिसका सबसे बड़ा दुर्योग यह घटित हुआ कि व्यापारिक समुदाय ने जनसंचार माध्यमों का दुरुपयोग कर रोग,महामारी से जनता में भय उत्पन्न करते है,फिर उसके टीके,दवायें,बचाव का संसाधन बेच कर अकूत धन कमाते हैं। यह चक्र इतना गहरा व जटिल होता है कि सम्पूर्ण भूलोक इनके अधीन हो जाता है।इनके इच्छा के अनुसार ही व्यवहार करने लगता है।ये जो चाहते है, जनता वही करती, खाती, पीती, पहनती है,वैसा ही जीवन शैली अपनाती है।इस प्रकार जो जनसंचार माध्यम जनता की शक्ति था, वह वैश्विक व्यवसायिकों व शासकों की शक्ति हो गया। हमारे काल में पत्रकार भिक्षु जैसे रहते थे।आज पत्रकार ऐश्वर्यशाली हो चुके है,क्योंकि जनता के बजाय व्यापारिक समुदाय व शासन के लिए कार्य करते है।मैं बाम्बे में धर्मयुग जैसी अन्तर्राष्ट्रीय प्रसार की पत्रिका का सम्पादन करके, खटिया पर सोता था । 16-18 घटें दिन-रात पढ़ता था। आज के मेरे उत्तराधिकारी, दूरदर्शक पर मदारी जैसे चीख-चीख कर तमाम अपुष्ट,अशुद्ध सूचनायें प्रस्तुत कर, ऐश्वर्य भोग रहे हैं।महामारी से संक्रमित रोगियों व मरने वालों को ओलम्पिक मेडल जैसी सारिणी प्रकाशित कर रहे हैं।जिससे जनता भयाक्रांत होकर प्रचारित बचाव के संसाधन, पागलपन के स्तर पर जाकर खरीद रही है,जबकि महामारी से स्वस्थ होने वाले लोगों की संख्या अधिक होते भी उसकी चर्चा नहीं करते है।आज ऐसा लग रहा है कि महामारी काल में मरने के अलावा, दुनियाँ में कुछ और हो ही नहीं रहा है।दुनियाँ के किसी भी संचार माध्यम में केवल कोरोना-कोरोना ही है।सबसे विचित्र तथ्य यह है कि भारतीय पत्रकार जनता की आवाज बनने के बजाय शासन की आवाज या शासनानुकूल आवाज बन चुके हैं।इस महामारी काल में जनता को संबल देने के बजाय उत्तेजना, घृणा, भय,विद्वेष के प्रसार में लीन है,यूं लगता है कि जैसे यदि देश,समाज में अभय, शान्ति, सहयोग, समृद्धि स्थापित हो जायेगी तो इनका अस्तित्व ही खत्म हो जायेगा।

   महात्मन !मेरे कहने का तात्पर्य यह है कि कोरोना महामारी का बल बढ़ाने में जनसंचार माध्यमों की बड़ी भूमिका है।इस समय जनता के बीच वैज्ञानिकों, विचारकों, चिकित्सकों के संदेशो का प्रसार होना चाहिए,परन्तु इसके विपरीत व्यापारियों,शासकों के विचार प्रसारित किये जा रहे हैं।इन्ही शब्दों के साथ मनुष्य की हजारों पीढ़ी के पूर्वज दिव्यात्माओं को प्रणाम करता हूँ। मुझे क्षमा करेगें,मैने अपने उत्तराधिकार में मदारी नहीं पैदा गया था,ये कहीं अन्यत्र आये लगते हैं।

( -कोरोना काल कथा-स्वर्ग में सेमीनार से)

 

Post a Comment

0 Comments