महामारी काल का जीवंत दस्तावेज है अचल पुलस्तेय का काव्य संग्रह "कोरोना काल की कवितायें" -डॉ. के.अनामिका*

 

"कोरोना काल की कवितायें" एक अद्वितीय काव्य-संग्रह है, जिसे कवि अचल पुलस्तेय ने महामारी के संकटकालीन दौर के अनुभवों, आस्थाओं, विडंबनाओं और मानवीय संवेदनाओं को शब्दों में पिरोकर प्रस्तुत किया है। यह संग्रह सिर्फ कविताओं का समूह नहीं है, बल्कि उस दौर की एक जीवंत दस्तावेज़ भी है, जो भविष्य में इतिहास के पन्नों में दर्ज होगा।

विषयवस्तु एवं शैली-

काव्य-संग्रह की रचनाओं में सन्नाटे की आवाज़, वुहान की दास्तान, वेनिस की पीड़ा, वाशिंगटन का भय, और मजदूरों की बेबसी जैसे विषयों को अत्यंत सजीवता से उकेरा गया है। कवि की लेखनी एक सजीव चित्रण प्रस्तुत करती है, जहाँ सन्नाटे में भी कविताएँ गूंजती हैं, वुहान की गगनचुंबी इमारतें विज्ञान के दर्प का प्रतीक बनती हैं, और वाशिंगटन का सामर्थ्य अदृश्य भय के आगे ढह जाता है।

अचल पुलस्तेय की कविताओं में तीक्ष्ण व्यंग्य के साथ-साथ समाज की कड़वी सच्चाइयों का प्रतिबिंब भी दिखाई देता है। "उबलते पत्थर", "रामलगन", निष्कर्ष-वाली लड़की" जैसी कविताएँ वर्ग-संघर्ष, गरीबों की विवशता और सत्ता की निष्ठुरता को सामने लाती हैं। "यम के दरबार में" और "यमलोक में प्रवेश परीक्षा" जैसे शीर्षक कल्पनाशीलता और यथार्थ का अनूठा मिश्रण प्रस्तुत करते हैं।

भाषा और शिल्प-

भाषा का प्रयोग अत्यंत सरल, मगर प्रभावशाली है। कविताओं में प्राकृतिक बिम्बों का प्रयोग—जैसे पेड़, पहाड़, नदी, हवाएं—कथ्य को और अधिक प्रभावशाली बनाता है। कविताओं की संरचना मुक्त छंद में है, जो लेखक को अपने विचारों की अभिव्यक्ति में पूरी स्वतंत्रता प्रदान करती है।

व्यंग्यात्मक कटाक्ष और तीखे प्रश्न इस संग्रह की विशेषता हैं। उदाहरण के लिए, "हम वाकई महान हैं" में एक तीखा व्यंग्य है जो समाज की ढोंगपूर्ण मानसिकता पर प्रहार करता है। इसी तरह, "दान" कविता में मानवीय संवेदनाओं का दोहरापन और दान की वास्तविकता को उजागर किया गया है।

समीक्षा एवं निष्कर्ष

"कोरोना काल की कवितायें" एक ऐसा दर्पण है, जिसमें पाठक अपने समय की सच्चाइयों का प्रतिबिंब देख सकता है। इस काव्य संग्रह में अचल पुलस्तेय ने न केवल महामारी के भयावह दृश्य को उकेरा है, बल्कि समाज की विडंबनाओं, सत्ता के द्वंद्व, और मानवीय करुणा की तस्वीर भी खींची है।

कुल मिलाकर, यह संग्रह पाठकों को झकझोरता है, सोचने पर मजबूर करता है और मानवीय अस्तित्व के प्रति एक नई दृष्टि प्रदान करता है। कवि का शब्द-शिल्प, उसकी गहराई और सामाजिक समझ, इसे एक कालजयी रचना की ओर इंगित करते हैं।

पुस्तक की विशेषताएँ:

1. समाज की जमीनी सच्चाई को दर्शाती कविताएँ।

2. व्यंग्यात्मक और संवेदनशील दृष्टिकोण।

3. भाषा की सरलता और बिंबात्मकता।

4. मानवीय संवेदनाओं और सत्ता की विडंबनाओं पर तीखा प्रहार।

कमजोर पक्ष:

कहीं-कहीं पर कविताओं की लंबाई पाठक की एकाग्रता को चुनौती देती है। कुछ कविताओं में प्रतीकात्मकता इतनी गहन है कि सामान्य पाठक को अर्थ समझने में कठिनाई हो सकती है।

समग्र निष्कर्ष:

यदि आप महामारी के उस भयावह दौर को कविता के रूप में महसूस करना चाहते हैं, तो "कोरोना काल की कवितायें" एक अनिवार्य पाठ है। यह केवल शब्दों का संग्रह नहीं, बल्कि एक कालखंड का जीवंत दस्तावेज़ है।

पुस्तक-कोरोना काल की कवितायें


रचनाकार-अचल पुलस्तेय
आईएसबीएन: 978-93-5438-519-3
मूल्य ₹ 80/
प्रकाशक-पेंसिल प्रकाशन, मुम्बई
*असि.प्रोफेसर,दिल्ली विश्वविद्यालय दिल्ली

 

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