मानवीय संवेदनाओं, सामाजिक विसंगतियों और व्यक्तिगत अनुभूतियों का काव्यसंग्रह-"जरा सोच के बताना- वरुण शैलेश*

 'जरा सोच के बताना' एक सशक्त काव्य संग्रह है, जिसमें कवि अचल पुलस्तेय ने मानवीय संवेदनाओं, सामाजिक विसंगतियों और व्यक्तिगत अनुभूतियों को प्रभावशाली ढंग से अभिव्यक्त किया है। इस संग्रह में कविताएँ न केवल भावनाओं को मुखरित करती हैं, बल्कि समाज के विभिन्न पहलुओं को भी सजीव रूप में प्रस्तुत करती हैं। कवि की लेखनी में सहजता और गहनता का अद्भुत समन्वय दिखाई देता है, जो पाठक को आत्ममंथन करने पर विवश करता है।

मुख्य भाव एवं विचारधारा:
इस काव्य संग्रह की कविताएँ मुख्यतः मानवीय संवेदनाओं, प्रेम, सामाजिक असमानताओं और जीवन के संघर्षों पर आधारित हैं। कवि ने जीवन की सरलतम भावनाओं को मार्मिकता के साथ उकेरा है। प्रत्येक कविता एक गूढ़ संदेश देती है, जो न केवल समाज को जागृत करती है, बल्कि व्यक्ति को अपने भीतर झाँकने के लिए भी प्रेरित करती है।

काव्य शैली और भाषा:
कवि की भाषा सरल, सुबोध और प्रवाहमयी है। अलंकारों का प्रयोग संतुलित मात्रा में किया गया है, जिससे कविताओं में सौंदर्य और प्रभाव दोनों उत्पन्न होते हैं। छंदबद्ध और मुक्तछंद दोनों प्रकार की कविताएँ संग्रहित हैं, जो काव्य की विविधता को दर्शाती हैं।

 प्रतीकात्मकता एवं बिम्ब:
कवि ने अपनी कविताओं में प्रतीकों का सुंदर प्रयोग किया है। प्रेम, दर्द, आशा, निराशा इत्यादि को प्रतीकात्मक रूप में प्रस्तुत किया गया है। प्रकृति से जुड़े बिम्ब जैसे नदी, पेड़, आकाश इत्यादि का उपयोग कविताओं को एक दृश्यात्मक अनुभव प्रदान करता है।

सामाजिक एवं सांस्कृतिक दृष्टिकोण:
कवि ने समाज में व्याप्त विभिन्न समस्याओं को अपनी लेखनी का विषय बनाया है। सामाजिक असमानता, महिलाओं की स्थिति, गरीबी और मानवता के मुद्दों पर कविताएँ समाज को एक दर्पण की भांति प्रस्तुत करती हैं। इसके साथ ही भारतीय सांस्कृतिक मूल्यों का सम्मान भी कविताओं में झलकता है।

कवि की दृष्टि और संवेदनशीलता:
कवि की दृष्टि अत्यंत संवेदनशील और समाज के प्रति जागरूक है। उनकी लेखनी में न केवल आलोचना है, बल्कि सुधार की प्रेरणा भी निहित है। यह संवेदनशीलता कविताओं को एक मानवीय दृष्टिकोण प्रदान करती है।

 विशेषताएँ एवं सीमाएँ:
काव्य संग्रह की विशेषता इसका सरलता से जटिल भावों को व्यक्त करना है। कवि की भाषा में प्रवाह और विचारों में स्पष्टता है। कुछ कविताओं में कथ्य की पुनरावृत्ति दिखाई देती है, जिसे थोड़ी अधिक संपादन की आवश्यकता हो सकती है।

समग्र मूल्यांकन:
'जरा सोच के बताना' एक ऐसा काव्य संग्रह है, जो पाठक के हृदय को छूता है और उसे समाज और आत्मा दोनों के प्रति विचारशील बनाता है। अचल पुलस्तेय की लेखनी संवेदनशील और सजीव चित्रण प्रस्तुत करती है, जो साहित्यिक दृष्टि से भी प्रशंसनीय है। यह काव्य संग्रह निःसंदेह एक प्रभावशाली साहित्यिक योगदान है।
पुस्तक-  जरा सोच के बताना

रचनाकार-अचल पुलस्तेय

आईएसबीएन:978-93-5438-526-1

मूल्य-₹ 120/ प्रकाशन वर्ष-2013

प्रकाशक-पेंसिल प्रकासन मुम्बई

 * पत्रकार,असि. न्यूज एडीटर,
नवभारत टाइम्स

 

 

 

 

 

 

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