Issue-32 Vol.1II, Jul.-Sep.2025 pp.38-42 Paper ID-E/D32/350
वैद्य
धन्वंतरि त्यागी M.S
(General Surgery) Ay1
वैद्य
साक्षी त्यागी M.D
(Samhita
& Siddhanta) crav1
1धन्वंतरि आयुर्वेद मल्टी स्पेशलिटी क्लिनिक, हापुड़, उ.प्र.
2असिस्टेंट प्रोफेसर, संहिता एवं सिद्धांत विभाग, दिव्या ज्योति आयुर्वेद मेडिकल कॉलेज, गाजियाबाद,
उ.प्र.
Email-Akhandjeevan.hpr@gmail.com
सारांश
किसी भी चिकित्सा
पद्धति की सफलता निदान की सटीकता पर मूल रूप से निर्भर करती है। आयुर्वेद में
निदान हेतु विभिन्न तकनीकी उपलब्ध है तथा आयुर्वेद चिकित्सक आदि काल से उनका उपयोग
करके मनुष्यों के साथ साथ अन्य जीवों को आरोग्य प्रदान करते आ रहे हैं। समय के साथ
साथ विश्व के प्रत्येक देश में पाश्चात्य चिकित्सा और निदान तकनीकों ने जनमानस पर
काफी प्रभाव छोड़ा है। गत छह दशकों में भारत में आयुर्वेद का तंत्र उतनी सरल भाषा
में आम जनता को अपनी निदान तकनीकों के बारे में नहीं बता पाया था जितना पाश्चात्य
चिकित्सा तंत्र बता पाया है। अब स्थिति यह है कि कोई आम व्यक्ति नाड़ी परीक्षा की
संक्षिप्त जानकारी रखता हो या नहीं लेकिन अल्ट्रासाउंड, एक्स रे आदि के बारे में अवश्य जानता है। यह
कहना अतिशयोक्ति नहीं होनी चाहिए कि अब किसी भी निदान तकनीक को परखने के लिए मूल
मानक पाश्चात्य निदान तकनीकें हो गई है। आयुर्वेद की निदान तकनीकों को लोकप्रिय
बनाने के लिए आयुर्वेद के तंत्र को बिना अपनी मौलिकता का ह्रास किये उसी के मार्ग
का अनुसरण करना उचित प्रतीत होता है। यह शोधपत्र एकीकृत आयुर्वेदिक निदान प्रणाली
प्रस्तुत करता है,
जिसमें मल, मूत्र, अग्नि,
नाड़ी, जिह्वा और BMI के विश्लेषण को आधुनिक उपकरणों, प्रश्नावली व क्लिनिकल अनुभव के साथ समन्वित किया गया है। यह प्रणाली भारत
की पहली डिजिटल-आधारित आयुर्वेदिक प्रयोगशाला द्वारा संचालित की जा रही है।
शब्दसूत्र- आयुर्वेद,आयुर्वेदिक निदान
प्रणाली,एकीकृत निदान तकनीक,नाड़ी परीक्षा,अग्नि (पाचन शक्ति),BMI विश्लेषण,आधुनिक उपकरणों के साथ
आयुर्वेद
Abstract-The success of any medical system fundamentally depends on the accuracy
of its diagnosis. Ayurveda offers a variety of diagnostic techniques, and
Ayurvedic practitioners have been using these methods since ancient times to
promote health in humans as well as other living beings. Over time, Western
medicine and diagnostic technologies have had a significant impact on people
worldwide.
In the past six
decades, the Ayurvedic system in India has not been able to communicate its
diagnostic methods to the general public in as simple and accessible a language
as Western medicine has. Today, an ordinary person may or may not have basic
knowledge of pulse examination, but they are certainly aware of techniques such
as ultrasound and X-ray. It would not be an exaggeration to say that, at
present, Western diagnostic methods have become the standard benchmark for
evaluating any diagnostic technique.
To popularize
Ayurvedic diagnostic techniques, it seems appropriate for the Ayurvedic system
to follow a similar path without compromising its originality. This research
paper presents an integrated Ayurvedic diagnostic system, which combines the
analysis of stool, urine, agni (digestive fire), pulse, tongue, and BMI with
modern instruments, structured questionnaires, and clinical experience. This
system is being operated by India’s first digital-based Ayurvedic laboratory.
Key Word- Ayurveda, Ayurvedic
Diagnostics, Integrated Diagnostic System, Pulse Examination (Nadi Pariksha,
Agni (Digestive Fire), BMI Analysis, Stool and Urine Analysis
परिचय (Introduction)
पारंपरिक आयुर्वेदिक
निदान पद्धति त्रिविध परीक्षा (दर्शन, स्पर्शन,
प्रश्न) और पंचनिदान
(हेतु,
लक्षण, उपशय, निदान,
अवस्था) पर आधारित है।
किंतु वैश्विक मंच पर इसे मान्यता दिलाने के लिए इसे पुनरुत्पादन योग्य (Reproducible), मात्रात्मक (Quantifiable) और डिजिटल रूप से संरचित बनाना आवश्यक है। इस
आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए, यह शोध एक ऐसी प्रणाली प्रस्तुत करता है जिसमें प्रश्न आधारित मूल्यांकन, जिह्वा विश्लेषण, Nadi Tarangini, और BMI गणना को समन्वित किया गया है।
उद्देश्य (Objective)
- आयुर्वेदिक निदान
पद्धति को प्रमाण-आधारित रूप में विकसित करना।
- आधुनिक विज्ञान के
साथ आयुर्वेदिक सिद्धांतों का समन्वय।
- आयुर्वेदिक जांचों
को डिजिटलीकरण और मानकीकरण की दिशा में ले जाना।
- वैश्विक चिकित्सा
प्रणाली में स्वीकार्यता प्राप्त करना।
विधि (Methodology)
- प्रश्न आधारित
परीक्षण (Question Based Assessments)
आयुर्वेद अनुसार पुरीष, अग्नि, मूत्र से संबंधित कुल 27 प्रश्न संकलित किए गए जिनका रोग के निर्णय में उच्च महत्व हो सकता है।
प्रत्येक प्रश्न को 5,
3, 1 अंकों के साथ अंकित
किया गया। कुल स्कोर से पुरीष, अग्नि,
मूत्र विकृति स्थिति
निर्धारित की जाती है। साथ ही त्रिदोषों की स्थिति का आकलन किया जाता है।
- नाड़ी परीक्षण – Nadi Tarangini द्वारा
नाड़ी तरंगिणी (Nadi Tarangini) में Piezoelectric sensors को हाथ की कलाई (radial artery – radial pulse
points) पर तीन स्थानों पर
लगाया जाता है जहां वात,
पित्त और कफ की नाड़ी
क्रमशः मानी जाती है। यह सेंसर नाड़ी की गति (rate), बल (pressure), तरंगों की प्रकृति (waveform), गहराई और लय (depth
& rhythm) जैसे मानकों को बहुत
सूक्ष्मता से पहचानते हैं तथा आयुर्वेद संहिताओं अनुसार त्रिदोषों की विभिन्न
अवस्था में निर्दिष्ट नाड़ी गति, लय आदि से उनका मिलान कर दस सेकंड का त्रिदोष नाड़ी ग्राफ, दोष अनुसार नाड़ी ग्राफ, आम उपस्थिति, अग्नि स्थिति,
ओज स्थिति, मानसिक स्थिति, अंतिम दोष रिपोर्ट प्रदान करती है।
- जिह्वा परीक्षण – Tongue Diagnosis
(DTA)
जिह्वा की आकृति, रंग,
नमी की स्थिति, सतह और किनारों पर क्षत, उभारों के साथ साथ जिह्वा का मोटापन, पतलापन से महास्त्रोतस, मूत्र वह स्त्रोतस, शरीर में विषाक्त तत्वों की मात्रा का संहिताओं
में निर्दिष्ट ज्ञान के साथ साथ चिकित्सीय अनुभव से समन्वित आकलन किया जाता है। Toxicity index,
Digestive Score, Dosha Dominance जैसे पैरामीटर्स के आधार पर रिपोर्ट तैयार की जाती है।
- BMI मूल्यांकन
रोगी के वजन और लंबाई से BMI की गणना करके इस आधार पर शरीर के पोषण की स्थिति
तथा मेदोवृद्धि संबंधित संभावित रोगों की जानकारी मिलती है। इस आंकड़ों से नाड़ी, प्रश्न आधारित परीक्षा से प्राप्त आंकड़ों को
सत्यापित करने में मदद मिलती है।
- आंकड़ों का
पुनरीक्षण और रिपोर्ट संकलन
प्रश्न परीक्षा, नाड़ी परीक्षा,
जिह्वा परीक्षा से
प्राप्त जानकारियों को एक स्थान पर एकत्रित करके मैन्युअल रूप से विश्लेषण करके
संभावित त्रुटियों का निराकरण चिकित्सक द्वारा किया जाता है। अंतिम रिपोर्ट तैयार
की जाती है तथा रिपोर्ट में दस सेकंड नाड़ी ग्राफ, जिह्वा का चित्र सम्मिलित किया जाता है।
विमर्श
(Discussion)
इस प्रकार तैयार जांच रिपोर्ट की निम्न अनुसार मुख्य
विशेषताएं (Salient
Features) हैं:
- त्रि-स्तरीय
मूल्यांकन प्रणाली – नाड़ी परीक्षा (Nadi Tarangini), जिह्वा परीक्षण (DTA), प्रश्नोत्तर
स्कोरिंग, मूत्र/मल परीक्षा।
- Piezoelectric
Pulse Sensors द्वारा नाड़ी की गति, दबाव, लय, और तरंगों का डिजिटल विश्लेषण।
- Tongue Analysis –
जीभ की सतह, परत, रंग, किनारों के आधार
पर दोष और आम की पहचान।
- Structured
Questionnaires – अग्नि, दोष, आम, मूत्र इत्यादि के
लिए 5-3-1 स्कोरिंग प्रणाली।
- BMI और Anthropometric डेटा का त्रिदोष
व्याख्या में समावेश।
- One click PDF रिपोर्ट जेनरेशन
त्रिदोष प्रतिशत, धातु स्थिति, अग्नि, आम व संभावित
रोगों सहित।
- Manual + Sensor आधारित क्लिनिकल
सहमति – वैद्य के निरीक्षण को टेक्नोलॉजी द्वारा पुष्टि।
लाभ (Benefits)
- Personalized
& Preventive – रोग के लक्षण प्रकट होने से पहले ही संभाव्यता का
संकेत।
- Evidence Based
Ayurveda – साक्ष्य आधारित
रिपोर्ट, जो वैज्ञानिक रूप
से प्रस्तुत की जा सके।
- OPD Diagnostic
Tool – 10–15 मिनट में रोगी का विस्तृत आयुर्वेदिक विश्लेषण।
- Non-invasive
Patient Friendly – रक्त या दर्दनाक प्रक्रिया के बिना निदान।
- Comparative
Monitoring – दोहराए गए परीक्षणों से सुधार की माप।
- Educational Tool
– छात्रों एवं
चिकित्सकों को दोष/धातु/मल/अग्नि को समझाने में सहायक।
हम इस तकनीक को दिसंबर 2024 से उपयोग कर रहे हैं तथा हमने समय समय पर
रिपोर्ट में आई त्रुटियों के निम्न संभावित कारण जाने हैं। (Possible Sources of
Error)
- Sensor Placement
Error – नाड़ी बिंदु पर
सेंसर का गलत स्थान दोष विश्लेषण को प्रभावित कर सकता है।
- External Factors
– रोगी का भोजन, मानसिक तनाव, शारीरिक गतिविधि, नींद आदि परिणामों
को प्रभावित कर सकते हैं।
- Manual
Interpretation Mismatch – वैद्य की दृष्टि और सेंसर रिपोर्ट में अंतर होने पर
दुविधा।
- Language/Interface
Limitations – ग्रामीण/वृद्ध रोगियों के लिए UI/UX उपयुक्त न हो।
इस अध्ययन से यह स्पष्ट होता है कि जब पारंपरिक
आयुर्वेदिक पद्धतियों को डिजिटल उपकरणों और वैज्ञानिक मापन के साथ जोड़ा जाता है, तब यह प्रणाली Personalized Preventive और Predictive Health की दिशा में सशक्त माध्यम बन सकती है। विशेष रूप
से आयुर्वेद के इंटर्न और नवागत चिकित्सकों को त्वरित गति के साथ सूक्ष्मता से
निदान करने में सहयोगी रह सकती है। लंबे समय से पारंपरिक आयुर्वेदीय निदान तकनीक
के अनुभव वाले चिकित्सकों के लिए यह विधि उनके चिकित्सा रिकॉर्ड को जन सामान्य से
लेकर वैज्ञानिक समुदाय के सामने व्यवस्थित तथा स्वीकार्य रूप से लाने में सहयोग कर
सकती है। एक चिकित्सक होने के नाते पूर्ण वैज्ञानिक शोध करने में हमारे लिए काफी
सीमाएं हैं और प्रैक्टिस करने वाले चिकित्सक मूलतः चिकित्सक होते हैं लेकिन
वैज्ञानिक नहीं। इसलिए आयुर्वेद के रोग निदान विषय में वैज्ञानिक शोध कार्य करने
वाले विद्वानों से आशा की जाती है कि वे इस क्षेत्र में नवीन संभावनाओं की तलाश
करें।
निष्कर्ष (Conclusion)
यह अध्ययन दर्शाता है कि आयुर्वेदिक निदान को आधुनिक
तकनीक,
वैज्ञानिक विधियों और
डिजिटल संसाधनों से जोड़कर इसे विश्व चिकित्सा मंच पर एक प्रामाणिक और भविष्यदर्शी
प्रणाली के रूप में स्थापित किया जा सकता है।
भविष्य की दिशा (Future Scope)
- Multi-centre
clinical trials
- Imaging & lab
correlation के साथ क्लिनिकल
मान्यता
- WHO & Ayush
collaboration द्वारा वैश्विक मानकीकरण
- AI based Mobile
Diagnostic Tools का विकास
- आयुर्वेदिक
रिपोर्टिंग को मेडिकल जर्नल्स से जोड़ना
वैज्ञानिक स्थिति (Scientific Status)
- Nadi Tarangini
Atreya Innovations द्वारा विकसित Multicenter pilot studies
द्वारा डेटा
संकलित Indian Journal of Traditional Knowledge AIIMS में पंजीकरण
- DTA (Tongue
Diagnosis) – Pattern Recognition, Color Mapping आधारित, Dermatological Imaging से प्रेरित
- Structured
Ayurvedic Questionnaires – चरक, अष्टांग, भावप्रकाश से प्रश्न संरचना
- Validated scoring
system – Clinical audit friendly
संदर्भ (Reference)
- चरक संहिता
चिकित्सा स्थान
- अष्टांग हृदय
सूत्रस्थान
- Tounge diagnosis
by Dr Vasant Lad
- WHO Traditional
Medicine Strategy (2014–2023)
- Nadi Tarangini by
Atreya Innovations
- Clinical
Documentation – Dhanvantri Ayurvedic Lab Hapur

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