होली की परम्परा बहुत पुरानी है,रंग-अबीर का खेल भी उतना ही पुराना है। पर पहले और आज की होली में बहुत फर्क है। पहले टेशू यानि पलास के फूल,चावल,हल्दी,पत्तियों से प्राकृतिक रंग बनाये जाते थे,जिनका त्वचा पर कोई दुष्प्रभाव नहीं होता था। आसानी से छूट भी जाते थे। इसके हमारे भोजपुरी इलाके में एक परम्परा थी।होली जलाने के दिन पूरे परिवार को सरसो का उबटन लगाया जाता था,जिसकी मैल सम्हत (होली) में जला दी जाती थी। जिसके पीछे यह विश्वास था कि ग्रह,बुरी नजर, रोग से छुटकारा मिलता है,परन्तु असल बात यह थी,त्वचा तैलीय चिकनी हो जाती थी,जिससे रंगों का दुष्प्रभाव नहीं होता था,आसानी से छूट जाते थे।
परन्तु आज रासायनिक रंग त्वचा को नुकसान तो
पहुँचाते ही है,आसानी से छूटते भी नहीं हैं। इसके लिए कुछ घरेलू टिप्स है जिन्हें प्रयोग कर दुष्प्रभाव
से बचते हुए आसानी रंगों को छुड़ाया जा सकता है।
जिसमें पहला उपाय तो वही परम्परागत उपाय है,होली
के पहले सरसों का उबटन लगा ही लेना चाहिए.यदि सरसो नहीं मिलता है,बेसन, हल्दी,सरसों
के तैल का उबटन लगाना चाहिए। यदि यह भी संभव नहीं है तो नारियल, तिल सरसो का तैल,ग्लीसरीन
अवश्य लगा लेना चाहिए ।
अब बात करते है होली के बाद की,जब रंग लग ही
चुका है। इसके लिए बेसन-हल्दी-दही या दूध या सरसों के तैल,कच्चा दूध,नारियल तैल,नींबू,एलोवेरा
में अकेले या दो या तीन द्रव्य मिक्स कर उबटन
लगायें। मुल्तानी मिट्टी के पावडर और नीम या चमेली के पत्ती का चूर्ण मिलाकर उबटन लगाये। इस घरेलू उपायों निश्चित ही
रंग आसानी से छूटने के साथ त्वचा सुरक्षित रहेगी ।

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