राष्ट्रीय संगोष्ठी-परिचर्चा " पाठकों के संकट काल में साहित्य सृजन-

 देवरिया 12 अप्रैल। मदन मोहन मालवीय पीजी कालेज,भाटपाररानी देवरिया (उप्र) एवं ईस्टर्न साइंटिस्ट जर्नल के संयुक्त तत्वावधान में कालेज के तक्षशिला ग्रन्थागार में " पाठकों के संकट काल में साहित्य सृजन, शिवनारायण सिंह की बोध कथाओं के विशेष संदर्भ में" विषय पर एक राष्ट्रीय संगोष्ठी एवम पुस्तक परिचर्चा का कार्यक्रम महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ सतीश चन्द्र ग़ौड़ की अध्यक्षता में सम्पन्न हुआ।


कार्यक्रम की शुरुआत मदन मोहन मालवीय शिक्षण संस्थान के अध्यक्ष श्री राघवेन्द्र वीर विक्रम सिंह अतिथियों वक्ताओं को अंगवस्त्र व स्मृतिचिन्ह भेंट कर सम्मानित करते हुए स्वागत किया ।इसके पश्चात विषय प्रवर्तन करते हुए जन संस्कृति मंच के उत्तर प्रदेश पार्षद व वरिष्ठ समीक्षक उद्भव मिश्र ने कहा कि अधिक दिन नहीं अभी मात्र बीस साल पहले बस स्टेशन,रेलवे स्टेशन पर किताबों की दुकानें लगती थी जहाँ चिप्स चाकलेट और बोतल का पानी बिकने लगा। हर शहर से साहित्य के बुक्स स्टाल गायब होने लगे है। इसका कारण सोसल मीडिया का प्रसार है,जिसमें झूठी-सच्ची सूचनायें से ही हमारी जानने पढ़ने की भूख को खत्म कर दिया है। ऐसे दौर में प्रेस्टिट इण्टर कालेज देवरिया के संस्थापक प्राचार्य शिवनारायण सिंह ने अपने छात्रों को बोध कथायें सुनाकर किताबों की ओर मोड़ने का महत्वपूर्ण प्रयास किया है। शिव नारायण सिंह इन्हीं बोध कथाओं का संग्रह है सचयन जो दस खण्डों प्रकाशित है। पाठकों संकट काल में बच्चों सुनने की रुचि उत्पन्न करना महत्वपूर्ण कार्य है।

चर्चा को आगे बढ़ाते हुए ईस्टर्न साइंटिस्ट के संपादक डॉ अचल पुलस्तेय ने कहा कि सोसल मीडिया ने साहित्य के पारम्परिक पाठकों का संकट जरूर उत्पन्न किया है,लेकिन इन्टर नेट का व्यापक फलक भी उपलब्ध कराया है। पढ़ने की रुचि रखने वालों को बहुत सारी किताबें आसानी से गुगुल और अमेजन पर उपलब्ध है। प्रिंट माध्यम की पत्रिकायें अवश्य कम हुई है,लेकिन ई पत्रिकाओं ने लेखको और पाठकों को व्यापक फलक उपलब्ध कराया ।यह फलक इतना व्यापक है जहाँ प्रिंट किताबों,पत्रिकाओं की पहुँच असंभव थी वहाँ भी ई बुक्स और पत्रिकाये सहज ही उपलब्ध है।


संगोष्ठी में बतौर मुख्य वक्ता बोलते हुए हिन्दी के आचार्य डॉ.पवन कुमार राय ने कहा - स्वस्थ समाज के निर्माण में साहित्य की महती भूमिका को रेखांकित करते हुए कहा कि साहित्य सृजन का उद्देश्य केवल समस्याओं को रेखांकित करना नहीं होता अपितु उनका समाधान प्रस्तुत करना भी होता है। साहित्य सृजन की सबसे लोकप्रिय विधा के रूप में कहानी प्रारंभ से ही अपनी सशक्त भूमिका निभाई है| बोध कथाएं मानव मन की जटिलता को अतिक्रमित कर सीधे हृदय को प्रभावित करती हैं,आत्मनिरीक्षण करने के लिए प्रेरित करती हैं तथा पर दुःखकातरता के भाव से जोड़ कर सबके मंगल की ओर उन्मुख करती है| विद्यालय के प्रार्थना सभा में अपने विद्यार्थियों को प्राचार्य डॉ शिवनारायण सिंह ने जो कहानियां सुनायी हैं, वे वास्तव में मानव मन को प्रेरित और प्रोत्साहित करने वाली है|इन कहानियों का संचयन एक सराहनीय पहल है| पाठकों के संकट काल में ये लघु बोध कथाएं पाठकीयता को उत्प्रेरित करती है।

डॉ राय ने शिव नारायण सिंह की 10 खण्डों पर प्रकाशित बोधकथाओं से चयनित 100 बोधकथाओं के संग्रह संचयनकी चुनिन्दा 10 कथाओं की सारांश व समीक्षा प्रस्तुत किया।

इस क्रम को आगे बढ़ाते हुए नागरी प्रचारिणी सभा देवरिया के उपाध्यक्ष व कवि सरोज कुमार पान्डेय ने कहा कि-पाठको अभाव लेखक लिखना नहीं छोड़ सकता है। जिसके हृदय में भाव व विचार उभरेगे उसका लिखना विवशता है। गोस्वामी तुलसी दास ने स्वांतःसुखाय रघुनाथ गाथा लिखा न कि पाठकों की अपेक्षा में।  इस संदर्भ में शिव नारायण सिंह बोध कथाओं का संग्रह महत्वपूर्ण है।

  समारोह को मुख्य अतिथि के रूप में महाविद्यालय के प्रबंधक राघवेन्द्र वीर विक्रम सिंह, विशिष्ट अतिथि के रुप में इंस्टर्न साइंस पत्रिका के सम्पादक डॉ अचल पुलस्तेय, तथा कवि , साहित्यकार एवं नागरी प्रचारिणी सभा देवरिया के उपाध्यक्ष सरोज कुमार पाण्डेय, क़ृषि विश्वविद्यालय अयोध्या के सेवानिवृत्त आचार्य डॉ रवि प्रकाश मौर्य, महाविद्यालय के वरिष्ठतम आचार्य डॉ कमलेश नारायण मिश्र, तथा डॉ राम औतार वर्मा ने भी परिचर्चा में भाग लेते हुए अपना विचार व्यक्ता किया| संगोष्ठी का संचालन हिंदी विभाग के अध्यक्ष डॉ रणजीत सिंह ने किया। अन्त में महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ सतीश चन्द्र गौड़ ने आभार व्यक्त किया।

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