जो होता नहीं है उसी का शोर मचाया जाता है, ताकि लगे कि बहुत कुछ हो रहा है। यही हाल आज आयुर्वेद का है। जनता और आयुर्वेद स्टाक होल्डर्स में एक भ्रम है आयुर्वेद में बहुत कुछ हो रहा है। जबकि सच यह है आयुर्वेद न ओपीडी बढी है न आईपीडी, न फैकल्टी की नियुक्तियाँ हो रहीं है मेडिकल अफसर की । हाँ हो रहा तो कुकुरमुत्ते की तरह नीजी कालेजों उग आना, और सरकारी आयुर्वेद कालेजों, विश्वविद्यालयों के सिर पर फैकल्टी व संसाधनो के अभाव में मान्यता खोने की तलवार लटक रही । पारा प्रतिबंधित है,सोना महँगा हो गयी, विकास आँधी में जंगल पहाड़ काट कर जड़ी-बूटियाँ खत्म हो रही है। पारा ही प्रभावी आयुर्वेद का मुख्य आधार है,जटिल रोगो में स्वर्ण भस्म सबसे बड़ा हथियार है। जड़ी-बूटियाँ तो है ही आयुर्वेद की । आइये देखते है उत्तराखण्ड में आयुर्वेद के सबसे पुराने कालेज-अब यूनिवर्सिटी का क्या हाल है? हाल तो कमोबेस यही सभी संस्थानों का है ।
उत्तराखंड की
सांस्कृतिक और आयुर्वेदिक विरासत का प्रतीक ऋषिकुल राजकीय स्नातकोत्तर आयुर्वेदिक
महाविद्यालय, जो 1919 से देशभर में प्राचीन आयुर्वेदिक चिकित्सा
शिक्षा इसकी ज्ञान गंगा प्रवाहित कर रहा है, इन दिनों मान्यता संकट के भंवर में उलझा हुआ है।
इस पूरे प्रकरण
में हुई लापरवाही पर सचिव आयुष एवं आयुष शिक्षा विभाग, श्री दीपेन्द्र चौधरी, IAS ने सख्त तेवर दिखाते हुए सचिवालय में समीक्षा बैठक
कर अधिकारियों की क्लास ले डाली।
सदियों पुरानी गरिमा पर लापरवाही का धब्बा
महामना मदनमोहन
मालवीय द्वारा स्थापित वर्तमान में उत्तराखंड आयुर्वेद विश्वविद्यालय के स्कूल नाम
से विख्यात हरिद्वार के केंद्र में गंगा
तट के पास स्थित ऋषिकुल परिसर न केवल भारत के सबसे पुराने आयुर्वेदिक शिक्षण
संस्थानों में से एक है, बल्कि
उत्तराखंड की शैक्षणिक और आध्यात्मिक धरोहर भी है। एक सदी से अधिक पुराने इस
संस्थान में आधुनिक व्याख्यान कक्ष, शास्त्रीय ग्रंथों से सुसज्जित विशाल पुस्तकालय और अनुसंधान प्रयोगशालाएँ
मौजूद हैं।
कॉलेज से संबद्ध
अस्पताल पंचकर्म केंद्र, विशेष
उपचार इकाइयों और नैदानिक सुविधाओं से युक्त है, जो छात्रों को वास्तविक परिदृश्यों में प्रशिक्षण
देता है और स्थानीय लोगों को समग्र स्वास्थ्य सेवा भी प्रदान करता है।
लेकिन अब, भारतीय चिकित्सा पद्धति के लिए राष्ट्रीय
आयोग द्वारा कॉलेज की सम्बद्धता के लिए कराए गए निरीक्षण की रिपोर्ट्स सामने आई
हैं कि कॉलेज ने BAMS पाठ्यक्रम
की मान्यता के लिए जरूरी मापदंड पूरे नहीं किए। अस्पताल में मरीजों की संख्या को
लेकर हेराफेरी, अधूरी फैकल्टी,
अनुपलब्ध लेबर रूम, निष्क्रिय पंचकर्म इकाई, अपूर्ण लाइब्रेरी, और दवाओं की भारी कमी जैसी कमियां राष्ट्रीय स्तर की
जांच में उजागर हुईं।
सचिव का फूटा
गुस्सा: "लापरवाही बर्दाश्त नहीं की जाएगी"
देहरादून सचिवालय
में विभागीय समीक्षा के दौरान आयुष सचिव दीपेन्द्र चौधरी ने संबंधित अधिकारियों
को चेतावनी दी व बहुत सख्त निर्देश दिए।
उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा- " की आयुष शिक्षा विभाग द्वारा पूर्व में ही 28 मार्च को सचिव के पत्र द्वारा तात्कालिक रूप से
शैक्षणिक एवं गैर शैक्षणिक आवश्यकताओं के लिए स्वीकृति प्रदान की गई थी। इसको
विश्वविद्यालय द्वारा अपने स्तर पर पूरा किया जाना। तथा विश्वविद्यालय द्वारा जो
भी आवश्यकताओं के लिए फंड की बजट की मांग की गई थी उसको भी स्वीकृत किया गया था।
फंड उपलब्ध होने के बावजूद उपयोग नहीं किया गया, यह न केवल लापरवाही है, बल्कि संस्थान के भविष्य के साथ खिलवाड़ है।
उन्होंने कहा लापरवाही अधिकारियों की बर्दाश्त नहीं की जाएगी सख्त एक्शन लिया
जाएगा। सरकार जीरो टॉलरेंस नीति पर काम कर रही है। संबंधित अधिकारी अपनी कर
प्रणाली में सुधार करें या अपने पदों को छोड़कर जाएं"
उन्होंने बताया कि
आयुष विभाग ने समय-समय पर फंड मुहैया कराया, लेकिन कॉलेज प्रशासन और अधीनस्थ तंत्र ने उसे खर्च
करने में घोर उदासीनता दिखाई जो अत्यंत चिंताजनक है।
"उन्होंने
कहा कि ऋषि कुल कॉलेज शिक्षा का प्राचीन
आधार स्तंभ होने के साथ-साथ एक देश की अमूल्य विरासत है जिसके उच्चीकरण के लिए
इसका 178 करोड़ का
प्रोजेक्ट भी भारत सरकार के आयुष मंत्रालयद्वारा
द्वारा पास किया गया है ।जिसका डीपीआर भी स्वीकृत हो गया है तथा प्रोजेक्ट
अपने अग्रिम चरण में कार्य कर रहा है। उन्होंने कहा कि मेरा कॉलेज के साथ
भावनात्मक लगाव भी है। जब मैं हरिद्वार का डीएम था । तब मालवीय सभागार में कई बार
मेरा जाना हुआ। सरकार इसके स्तर को सुधारने के लिए निरंतर प्रयासरत है और शीघ्र ही
व्यवस्था में सुधार किया जाएगा। – दीपेन्द्र चौधरी
सचिव श्री चौधरी
ने संवाददाता से बात करते हुए कहा: ऋषिकुल आयुर्वेद कॉलेज से मेरा व्यक्तिगत और
भावनात्मक जुड़ाव है। यह महज एक संस्थान नहीं, बल्कि ऋषिकुल गुरुकुल कोलेज आयुर्वेद की आत्मा है।
हमारे उत्तराखंड, हरिद्वार की
सांस्कृतिक विरासत का हिस्सा है।" उन्होंने कहा कि जब प्रधानमंत्री नरेंद्र
मोदी और मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के नेतृत्व में आयुर्वेद और योग को वैश्विक
पहचान मिल रही है, तो ऐसे में
उत्तराखंड का यह प्रमुख संस्थान यदि मान्यता से वंचित रह जाए, तो यह न केवल राज्य की छवि को धूमिल करेगा
बल्कि राष्ट्रीय अस्मिता को भी ठेस पहुंचाएगा।
"हम हरसंभव
प्रयास कर रहे हैं" – विभागीय प्रतिक्रिया
सचिव ने यह भी आश्वस्त किया कि:"हमारी टीम लगातार निरीक्षण रिपोर्ट की समीक्षा कर रही है। जिन मापदंडों के
अनुसार मान्यता प्रभावित हुई है, उन्हें दुरुस्त करने के लिए हरसंभव कदम उठाए जा रहे हैं। जहां भर्ती की जरूरत
है, वहां भी नियमानुसार
नियुक्तियों की प्रक्रिया की जायेगी।" उन्होंने कुलसचिव अधिकारियों
प्रोफेसरओपी सिंह को ऋषिकुल की मान्यता लाने के लिए तत्काल यथा आवश्यक कदम उठाने
के लिए निर्देशित किया। उनको निर्देशित
किया कि आयोग में आवेदन के लिए पुनः शपथ पत्र के दाखिल कर आयोग के साथ वार्ता
करें। और उनकी रिपोर्ट में जो भी कमियां हैं उनको तत्काल दूर करें और जो भी शासन
स्तर पर मदद की आवश्यकता होगी उसको प्रदान किया जाएगा। साथ ही विश्वविद्यालय के अन्य मुद्दोंपरके लिए वार्ता
करके कि आगामी 30 दिनों में प्रगति की स्पष्ट रिपोर्ट प्रस्तुत करें।
सचिव ने निर्देश दिए कि अस्पताल में मरीजों की संख्या, पंचकर्म इकाइयों की क्रियाशीलता और शिक्षा गुणवत्ता
को सुधारा जाए।
लेकिन एक बात निश्चित है — अब लापरवाही की कोई जगह नहीं है। या तो सिस्टम
सुधरेगा, या जवाबदेही तय
होगी।…..

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