वर्षा ऋतुचर्या का पालन कर बरसाती रोगों से बचें

डॉ.अनुश्रीयम् कीर्ति *

यह लेख आपको वर्षा ऋतु के दौरान अपनी जीवनशैली को अनुकूल बनाने के लिए एक व्यापक मार्गदर्शिका प्रदान करेगा. यहां बताए गए सिद्धांतों को अपनाकरआप न केवल इस खूबसूरत मौसम का आनंद ले पाएंगेबल्कि सामान्य बीमारियों से बचकर एक स्वस्थ और ऊर्जावान जीवन जी पाएंगे. याद रखेंरोकथाम हमेशा इलाज से बेहतर हैऔर आयुर्वेद हमें इसी दिशा में सशक्त करता है-संपादक


वर्षा की बूंदें धरती को सींचती हैं, प्रकृति अपने आप को नवीनीकृत करती है. यह वह समय है जब हमें भी अपने स्वास्थ्य पर विशेष ध्यान देना चाहिए. हमारी जीवनशैली का हर पहलू, हमारे द्वारा खाए जाने वाले भोजन से लेकर हमारी दैनिक आदतों तक, हमारे स्वास्थ्य को प्रभावित करता है. आयुर्वेद, जीवन का प्राचीन विज्ञान, हमें इस मौसमी बदलाव के साथ सामंजस्य स्थापित करने के लिए अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करता है।

आयुर्वेद, जो जीवन का विज्ञान है, हमें प्रकृति के साथ सामंजस्य स्थापित करके स्वस्थ रहने का ज्ञान देता है. ऋतुचर्या, या मौसम के अनुसार जीवनशैली, इसी सामंजस्य का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है. वर्षा ऋतु (मानसून), अपनी हरी-भरी सुंदरता और सुहावने मौसम के साथ-साथ, हमारे शरीर पर कुछ विशिष्ट प्रभाव डालती है. इन प्रभावों को समझकर और तदनुसार अपनी दिनचर्या में बदलाव करके हम इस मौसम में भी निरोगी और ऊर्जावान रह सकते हैं.

वर्षा ऋतु में प्रकृति में कई महत्वपूर्ण परिवर्तन होते हैं. सूर्य की तीव्र किरणें बादलों में छिप जाती हैं, जिससे पृथ्वी पर शीतलता और नमी बढ़ती है. आयुर्वेद के अनुसार, इस मौसम में अग्नि तत्व (पाचन अग्नि या जठराग्नि) कमजोर पड़ जाता है. इसका सीधा अर्थ है कि हमारी पाचन शक्ति मंद हो जाती है, जिससे भोजन को पचाने में अधिक समय लगता है और पाचन संबंधी विकार जैसे अपच, गैस, पेट फूलना, दस्त और कब्ज की शिकायतें आम हो जाती हैं।

इसके अलावा, वर्षा ऋतु में वात दोष की वृद्धि होती है, जो हवा और आकाश के गुणों का प्रतिनिधित्व करता है. वात की वृद्धि के कारण जोड़ों में दर्द, गठिया, मांसपेशियों में अकड़न, पेट दर्द और कब्ज जैसी समस्याएं बढ़ सकती हैं. इसी के साथ, वातावरण में बढ़ी हुई नमी और वाष्प के कारण पित्त दोष भी असंतुलित हो सकता है, जिससे त्वचा संबंधी विकार, एसिडिटी, जलन और हल्का बुखार जैसी समस्याएं देखने को मिल सकती हैं. कफ दोष, जो पृथ्वी और जल के गुणों का प्रतिनिधित्व करता है, आमतौर पर वर्षा ऋतु में संतुलित रहता है या थोड़ा बढ़ सकता है, जिससे सर्दी-जुकाम, खांसी और साइनस जैसी समस्याएं हो सकती हैं।

इन शारीरिक और वातावरणीय परिवर्तनों को ध्यान में रखते हुए, आयुर्वेद वर्षा ऋतु के लिए एक विशेष ऋतुचर्या का सुझाव देता है:

आहार (भोजन): पाचन को मजबूत करें

वर्षा ऋतु में सबसे महत्वपूर्ण है अपनी पाचन अग्नि को सहारा देना.

  • हल्का और सुपाच्य भोजन: इस मौसम में गरिष्ठ भोजन से बचें. पुराने चावल, जौ, गेहूं, मूंग दाल, मसूर दाल जैसे हल्के अनाज और दालें उत्तम मानी जाती हैं. दलिया, खिचड़ी, सूप (सब्जी या दाल का), और उबली हुई या भाप में पकी हुई सब्जियां जैसे लौकी, तोरी, परवल, कद्दू, टिंडा का सेवन करें.
  • गुनगुना पानी: पूरे दिन गुनगुना पानी पिएं. यह पाचन को बढ़ावा देता है, शरीर से विषाक्त पदार्थों (अमा) को बाहर निकालने में मदद करता है, और वात दोष को शांत करता है. पानी में थोड़ा अदरक, तुलसी या जीरा डालकर उबालना और छानकर पीना और भी फायदेमंद होता है.
  • ताजे और गर्म भोजन का सेवन: हमेशा ताजा पका हुआ भोजन ही खाएं. बासी, ठंडा और प्रोसेस्ड भोजन से बचें, क्योंकि ये पाचन को कमजोर करते हैं और अमा (विषाक्त पदार्थ) का निर्माण करते हैं.
  • मसालों का उपयोग: पाचन अग्नि को बढ़ाने के लिए अपने भोजन में अदरक, लहसुन, हल्दी, जीरा, धनिया, हींग, काली मिर्च और सौंठ जैसे पाचन उत्तेजक मसालों का प्रयोग करें. ये मसाले न केवल स्वाद बढ़ाते हैं, बल्कि पाचन तंत्र को भी मजबूत करते हैं और शरीर को संक्रमण से बचाते हैं.
  • कड़वे, कसैले और अम्लीय रस: आहार में करेला, नीम, परवल जैसे कड़वे; चना, मूंग, मसूर जैसे कसैले; और नींबू, आंवला, अनार जैसे अम्लीय रसों को शामिल करें. ये रस वात और पित्त को संतुलित करने में मदद करते हैं.
  • दही और छाछ से बचें: वर्षा ऋतु में दही, छाछ और अन्य खमीरीकृत पदार्थों के सेवन से बचें, क्योंकि ये वात दोष को बढ़ा सकते हैं और पाचन को बाधित कर सकते हैं. इनके बजाय, गर्म सूप या हर्बल चाय का सेवन करें.
  • ज्यादा पत्तेदार सब्जियों से बचें: पत्तेदार सब्जियों में इस मौसम में नमी और कीटाणु अधिक हो सकते हैं, इसलिए इनका सेवन सीमित करें या अच्छी तरह धोकर और पकाकर ही खाएं.

विहार (जीवनशैली): संतुलन और स्वच्छता

सही जीवनशैली अपनाना भी वर्षा ऋतु में स्वस्थ रहने के लिए उतना ही महत्वपूर्ण है जितना सही आहार.

  • पर्याप्त नींद: शरीर को पर्याप्त आराम देना आवश्यक है. 7-8 घंटे की गहरी नींद लें ताकि शरीर की मरम्मत और ऊर्जा का पुनर्निर्माण हो सके.
  • हल्का व्यायाम: नियमित रूप से हल्का व्यायाम करें, जैसे सुबह की सैर (जब बारिश न हो), योग, प्राणायाम और ध्यान. अधिक परिश्रम वाले या थका देने वाले व्यायाम से बचें, क्योंकि ये वात दोष को बढ़ा सकते हैं.
  • त्वचा की देखभाल: इस मौसम में त्वचा संबंधी संक्रमण और फंगल इन्फेक्शन आम होते हैं. त्वचा को साफ और सूखा रखें. नीम के पानी से स्नान करना या चंदन और हल्दी के लेप का प्रयोग करना त्वचा को स्वस्थ रखने में मदद कर सकता है.
  • साफ और सूखे कपड़े: हमेशा हल्के, ढीले और सूखे कपड़े पहनें. सिंथेटिक कपड़ों से बचें, जो नमी को रोक सकते हैं. कपड़े नियमित रूप से बदलें, खासकर यदि वे गीले हो गए हों.
  • दिन में सोने से बचें: वर्षा ऋतु में दिन में सोने से बचें, क्योंकि यह पाचन अग्नि को कमजोर करता है और कफ दोष को बढ़ाता है, जिससे सुस्ती और आलस्य आ सकता है.
  • तालाबों और नदियों में स्नान से बचें: वर्षा के जल या दूषित जल से भरे तालाबों और नदियों में स्नान करने से बचें, क्योंकि यह त्वचा संक्रमण और अन्य बीमारियों का कारण बन सकता है.
  • स्वच्छता: अपने घर और आसपास के वातावरण को स्वच्छ और सूखा रखें. मच्छरों और अन्य कीड़ों को पनपने से रोकने के लिए पानी जमा न होने दें.

विशेष आयुर्वेदिक सुझाव:

  • पंचकर्म चिकित्सा: यदि आपको बार-बार स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं होती हैं, तो किसी योग्य आयुर्वेदिक चिकित्सक की सलाह से पंचकर्म चिकित्सा, विशेषकर बस्ती (औषधीय एनीमा), करवाना वात दोष को शांत करने और शरीर से विषाक्त पदार्थों को निकालने में अत्यधिक सहायक हो सकता है.
  • अभ्यंग (तेल मालिश): नियमित रूप से गुनगुने तिल के तेल से शरीर की मालिश (अभ्यंग) करना वात दोष को शांत करता है, त्वचा को पोषण देता है और मांसपेशियों के दर्द को कम करता है.
  • हर्बल चाय: अदरक, तुलसी, दालचीनी और लौंग से बनी हर्बल चाय का सेवन सर्दी-जुकाम और खांसी से बचाव में मदद करता है और पाचन को भी सुधारता है.
  • धूप का सेवन: जब भी संभव हो, थोड़ी देर के लिए सीधी धूप में बैठें. यह शरीर में विटामिन डी के उत्पादन में मदद करता है, नमी को कम करता है और मूड को बेहतर बनाता है.
  • खुशबूदार तेलों का उपयोग: चंदन या लैवेंडर जैसे खुशबूदार तेलों का उपयोग करना मानसिक शांति प्रदान करता है और वातावरण को सुखद बनाता है।
वर्षा ऋतु में अपनी दिनचर्या और आहार में ये छोटे-छोटे बदलाव करके हम न केवल बीमारियों से बच सकते हैं, बल्कि इस खूबसूरत मौसम का पूरा आनंद भी ले सकते हैं. याद रखें, आयुर्वेद हमें प्रकृति के साथ कदम से कदम मिलाकर चलने का मार्ग दिखाता है, जिससे हम हमेशा स्वस्थ और खुश रह सकें।

 *आईएमएस बीएचयू. सीनियर रेजिडेंट एम.एस (आयु.स्त्री एवं प्रसूति.)आर.ए.सी. वाराणसी।

 

 

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