भारत में प्रतिवर्ष 5 सितम्बर को शिक्षक दिवस मनाया जाता है। डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन की जयंती पर मनाया जाने वाला यह दिवस हमें शिक्षा प्रणाली में शिक्षक की केंद्रीय भूमिका की स्मृति दिलाता है। किंतु यह अवसर केवल औपचारिक अभिनंदन का नहीं, बल्कि उन *वास्तविक समस्याओं* पर गंभीर विमर्श का होना चाहिए जिनका सामना शिक्षक—चाहे सरकारी हों या निजी—प्रतिदिन करते हैं। शिक्षा व्यवस्था नीतिगत परिवर्तनों, तकनीकी हस्तक्षेपों और सामाजिक दबावों से गुजर रही है। इस परिप्रेक्ष्य में शिक्षकों की दशा पर *शोध-आधारित नीति हस्तक्षेप* अनिवार्य हो जाते हैं।
अनुसंधानों से स्पष्ट है कि सरकारी विद्यालयों में कार्यरत शिक्षकों को लगातार गैर-शैक्षणिक कार्यों में लगाया जाता है। जनगणना, चुनाव ड्यूटी, सर्वेक्षण और अन्य प्रशासनिक दायित्व उनके अध्यापन समय को सीमित कर देते हैं (UNICEF, 2019)। ग्रामीण और आदिवासी क्षेत्रों में विद्यालयों में शौचालय, स्वच्छ जल, पुस्तकालय, प्रयोगशालाएँ और डिजिटल उपकरण जैसी न्यूनतम सुविधाओं का अभाव है। पदस्थापन और स्थानांतरण संबंधी नीतियाँ उनके व्यक्तिगत जीवन और पेशेवर संतुलन दोनों को प्रभावित करती हैं (Govinda & Josephine, 2004)।
2.
निजी विद्यालयों में सेवा सुरक्षा: न्यूनतम वेतन
और सेवा स्थायित्व सुनिश्चित करने हेतु कानूनी ढाँचा बनाया जाए।
3.
निरंतर प्रशिक्षण और संसाधन: शिक्षकों को नई
तकनीकों और शोध-पद्धतियों से लैस करने के लिए निरंतर प्रशिक्षण कार्यक्रम चलाए
जाएँ।
4. **सामाजिक मान्यता**: समाज में शिक्षण पेशे की गरिमा पुनः
स्थापित की जाए ताकि शिक्षक सम्मानपूर्वक कार्य कर सकें।
1-Govinda,
R., & Josephine, Y. (2004). Para-Teachers in India: A Review.
New Delhi: National Institute of Educational Planning and Administration
(NUEPA).
2-Kingdon,
G. (2017). The Private Schooling Phenomenon in India: A Review. IZA Discussion
Paper No. 10612. Bonn: Institute of Labor Economics.
3-Ministry
of Human Resource Development \[MHRD]. (2020). National Education Policy 2020.
Government of India.
4-PROBE
Team. (1999). Public Report on Basic Education in India. New Delhi: Oxford University
Press.
5-UNICEF.
(2019). Role of Teachers in India’s School Education: A Situational Analysis.
New Delhi: UNICEF India.
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