वैद्य धन्वंतरि त्यागी, M.S GENERAL SURGERY (AY)
🌿🩺 क्या वास्तव में आयुर्वेद में शोध की कमी है? या जानकारी की कमी है? 🩺🌿
✅ 900+ आयुर्वेदिक फार्मूलेशन्स पर आधुनिक मानकों के अनुरूप
अध्ययन
✅ हजारों की संख्या में PG थीसिस और डॉक्टोरल शोध
फिर भी आयुर्वेद
के छात्र और चिकित्सक अक्सर कहते हैं कि “आयुर्वेद में और शोध की आवश्यकता है” —
और जब कोई बाहरी व्यक्ति भी यही कहता है, तो वे भी सहमत हो जाते हैं। जबकि सत्यता यह है कि आयुर्वेद का ऐसा कोई प्रचलित
फार्मूला या औषध द्रव्य या तकनीक ऐसी नहीं हैं जिस पर कम से कम 5 मजबूत रिसर्च न हो चुकी हों!
इसके मुख्य कारण:
1️⃣ छात्रों और चिकित्सकों को पता ही नहीं कि ये शोध पत्र कहां मिलते हैं और कैसे
पढ़ें।
2️⃣ शोध पत्र, सेमिनार या
जर्नल तक सीमित रह जाते हैं – छात्रों और प्रैक्टिशनर्स तक संक्षिप्त सारांश नहीं
पहुंचता।
3️⃣ फार्मा कंपनियां भी शोध को डॉक्टर्स तक पहुंचाने में सक्रिय भूमिका नहीं निभा
रहीं।
4️⃣ मीडिया में आयुर्वेद के शोध को सही ढंग से हाइलाइट नहीं किया जाता।
5️⃣ पास होने के बाद अधिकांश PG थीसिस सिर्फ अलमारी में बंद रहती हैं; उन्हें डॉक्टर्स के बीच साझा नहीं किया जाता।
6️⃣ एलोपैथिक लॉबी इन्हीं शोधों को अपने ढंग से पेश कर, सिस्टम को उलट-पलट कर, आयुर्वेद के असली योगदान को छुपा देती है।
7️⃣ शोध संकलन और व्यवस्थित प्रस्तुति की कमी से भी यह भ्रम और मजबूत होता है कि
आयुर्वेद में वैज्ञानिक प्रमाण नहीं हैं।
8️⃣ डिजिटल प्लेटफॉर्म्स और मोबाइल एप्स पर आयुर्वेदिक शोध का फ्री, व्यवस्थित और सरल एक्सेस अभी तक उपलब्ध नहीं
हो पाया है।
9️⃣ विश्वविद्यालयों और काउंसिल्स की तरफ से सेंट्रल पब्लिकेशन पोर्टल या शोध
बैंक जैसी योजनाएं भी नहीं के बराबर हैं।
🔟 आधुनिक चिकित्सा में लगातार अपडेटेड गाइडलाइन्स बनती हैं, लेकिन आयुर्वेद में प्रैक्टिशनर्स के लिए अपडेटेड, इकट्ठा साक्ष्य-आधारित गाइडलाइन्स नहीं बन पातीं।
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👉 शोध की कमी नहीं, बल्कि शोध की जानकारी, प्रचार और उपयोग की कमी असली समस्या है।
👉 अगर आयुर्वेद का शोध व्यवस्थित रूप से छात्रों,
चिकित्सकों और समाज तक पहुंचे,
तो आयुर्वेद के प्रति धारणा और
स्वीकार्यता दोनों बदल सकते हैं।
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