युवा मन के अन्तर्द्विन्द की कहानियों का संग्रह-मैं भूल सकता हूँ क्या ?-अचल पुलस्तेय

पुस्तक समीक्षा

युवा मन के अन्तर्द्विन्द की कहानियों का संग्रह-मैं भूल सकता हूँ क्या ?-अचल पुलस्तेय

  

153 पेज के कहानी संग्रह में कुल 21 कहानियाँ हैं, जिन्हें  एक बार में पढ़ने पर लगता है,एक ही कहानी औपन्यासिक आकार ले रही है। भावनात्मक रुप से देखे तो एक ही कहानी बदलते पात्रों के साथ दुहराई जा रही है।

अचल पुलस्तेय
लैंगिक वर्जनाओं के ग्रामीण परिवेश से निकल कर एक युवा मन जब उच्च शिक्षा के मुक्त परिवेश में जाता है,तो अन्तर्द्विन्द में फँसना स्वाभाविक होता है।इस उम्र में लैंगिक आकर्षण भी स्वाभाविक होता है,जो कैरियर के दबाव में कल्पनाओं तक तैरने लगता है।संवेदनशील मन उन्हें गीतों, कविताओं, कहानियों में अभिव्यक्ति कर देता है।प्रशासनिक अधिकारी कवि कथाकार निगम अवधेश राजू का कहानी संग्रह “ मैं भूल सकता हूँ क्या ? ” इसी अन्तर्द्विन्द की अभिव्यक्ति है।

लैंगिक वर्जनाओं के ग्रामीण परिवेश से निकल कर एक युवा मन जब उच्च शिक्षा के मुक्त परिवेश में जाता है,तो अन्तर्द्विन्द में फँसना स्वाभाविक होता है।इस उम्र में लैंगिक आकर्षण भी स्वाभाविक होता है,जो कैरियर के दबाव में कल्पनाओं तक तैरने लगता है।संवेदनशील मन उन्हें गीतों, कविताओं, कहानियों में अभिव्यक्ति कर देता है।प्रशासनिक अधिकारी कवि कथाकार निगम अवधेश राजू का कहानी संग्रह मैं भूल सकता हूँ क्या ? ” इसी अन्तर्द्विन्द की अभिव्यक्ति है।

 153 पेज के कहानी संग्रह में कुल 21 कहानियाँ हैं,जिन्हें एक बार में पढ़ने पर लगता है,एक ही कहानी औपन्यासिक आकार ले रही है। भावनात्मक रुप से देखे तो एक ही कहानी बदलते पात्रों के साथ दुहराई जा रही है।

पहली कहानी अभिशप्त अकेलापनप्रति लैंगिक आकर्षण में एकतरफा प्रेम की अनुभूति है,जिसकी अंतिम परिणित निखिल के अकेलेपन में बदल जाती है ।

 दूसरी कहानी आस्था भावनाओं के आगे तर्क पराजित होकर आस्था में बदलने की घटना का सुन्दर चित्रांकन है। जिसमें दो युवा मन एक दूसरे की भावनाओं की समानुभूति प्रेम की राह पर चल पड़ते हैं। इसी तरह त्रिकोणवासना और प्रेम का अन्तर्द्विन्द है तो कोरी हथेलीकहानी में प्रतियोगिताओं की असफलता युवाओं को अक्सर ज्योतिष व हस्तरेखा वाचन की ओर उन्मुख कर देती है, कुछ मनोवैज्ञानिक आम समस्याओं को बताकर ज्योतिषी होने का भ्रम हो जाता है। पर इस कहानी में युवा हस्तरेखा विशेषज्ञ एक कालगर्ल की हस्तरेखा पढ़ने में असफल होने पर आत्मग्लानि महसूस करता है। अगली कहानी हलचलकिशोर वय के भावात्मक हलचल के रेखांकित करती है।

एक सरल रेखा के अनेक बिन्दुयौन आकर्षण और विफल प्रेम की कहानी है,जो उच्च शिक्षा या प्रतियोगी परीक्षाओं की
तैयारी में लगे युवा की मनःस्थिति की बखूबी बयान करती है।

शीर्षक कहानी की शुरुआत दार्शनिक अंदाज में होती है-“जीवन के प्रसंगों की पुनरावृत्ति होती है और नये रूप,आकार में नये परिवेश में जब कोई पुराना प्रसंग हमसे साक्षात्कार को प्रस्तुत होता है।” परन्तु यह भी कालेज के दिनों का स्मरण करती हुई,पति-पत्नी के एक चरित्र को खड़ा कर देती है।इसी क्रम में स्पर्श,मासूनियत,ठहरता बचपन आदि शेष कहानियाँ भी एकल युवा मन के प्रेम,विछोह के ताने बाने से बुनी गयीं है। इसी लिए बदलते पात्रों का उपन्यास लगता है यह कहानी संग्रह ।

कहानियों की भाव प्रवणता व युवा मन की संवेदनायें देखकर ऐसा लगता है कथाकर निगम अवधेश जो कवि कथाकार के साथ एक प्रशासनिक अधिकारी हैं,संभव है प्रतियोगी परीक्षा व उच्च शिक्षा के परिसर में भोगा देखा हो या उस माहौल को गहराई से अनुभव किया हो,जिससे संवेदना का प्रवाह बह निकला हो।

भाषा और कथा शिल्प की बात करें तो ये योजना रहित लिखी गयी लगती है। युवा मन ने जैसा अनुभव किया,संवेदित हुआ वैसा एक साँस में कागज पर उतार दिया है।कबीर की भाषा में कहें तो जस तस धरि दिन्हीं चदरिया है यह कथा संग्रह ।

पुस्तक- मैं भूल सकता हूँ क्या ?
लेखक-निगम अवधेश 'राजू'
विधा -कहानी संग्रह 
मूल्य -290रूपये
प्रकाशक-रवीना प्रकाशन दिल्ली
समीक्षक-अचल पुलस्तेय


 

 

 

 

 

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